जोधपुर। रेगिस्तान की तपती रेत पर शुक्रवार को भारतीय सेना की शक्ति गरज उठी। जैसलमेर में फैले विशाल मरुस्थल में सेना ने अपने संयुक्त हथियार अभियान का शानदार प्रदर्शन किया। आसमान में उड़ते हेलीकॉप्टर और जमीन पर दौड़ते टैंक एक साथ दिखे -जैसे कोई जंग अभी शुरू होने वाली हो। दरअसल, भारत की तीनों सेनाएं इन दिनों पश्चिमी सीमा पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद सबसे बड़ा युद्धाभ्यास कर रही है, जिसका नाम युद्धाभ्यास त्रिशूल दिया गया है। करीब तीस हजार सैनिक इस अभ्यास में अपना दमखम दिखाकर दुनिया को सन्देश दे रहे हैं कि हम किसी से कम नहीं। युद्धाभ्यास मेंं कमांड पोस्ट से हर यूनिट पर नजर रखी जा रही है।
ड्रोन और सैटेलाइट से आई रीयल-टाइम तस्वीरें स्क्रीन पर हैं। यह सिर्फ अभ्यास नहीं, बल्कि तकनीकी तैयारी का इम्तिहान है, जहां एक गलती की गुंजाइश नहीं। सेना का कहना है कि यह अभ्यास भविष्य के युद्ध के लिए बेहद अहम है, क्योंकि आने वाले समय में युद्ध सिर्फ बंदूकों से नहीं, बल्कि नेटवर्क, सेंसर और सटीक समन्वय से लड़े जाएंगे। इस मिशन में सेना के भरोसेमंद हेलीकॉप्टर ध्रुव, रुद्र, चेतक और चीता अहम भूमिका निभा रहे है।
विमानन विंग और मैकेनाइज्ड यूनिट्स ने अभूतपूर्व समन्वय का प्रदर्शन :अभ्यास के दौरान सेना के विमानन विंग और मैकेनाइज्ड यूनिट्स ने अभूतपूर्व समन्वय का प्रदर्शन किया। हवाई निगरानी, रीकॉन ओवरवॉच और विशेष हैलीबोर्न मिशन को सफलता से अंजाम दिया गया। रैपिड ट्रूप इंसर्शन और क्लोज-सपोर्ट कॉम्बैट मूव्स के जरिए हवाई और जमीनी बलों ने ऑपरेशन तालमेल का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।
इस अभ्यास में हेलीकॉप्टर यूनिट्स द्वारा अग्रिम पंक्तियों में सैनिकों की त्वरित तैनाती, बख्तरबंद टुकड़ी को के साथ समन्वय और रियल-टाइम डेटा लिंक की मदद से गतिशील युद्धक्षेत्र में निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन किया गया। डिजिटल वॉरफेयर सपोर्ट सिस्टम का प्रयोग :अभ्यास त्रिशूल में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, डेटा लिंकिंग और डिजिटल वॉरफेयर सपोर्ट सिस्टम का प्रयोग किया गया है। यह अभ्यास केवल हथियारों या फोर्सेस के तालमेल का प्रदर्शन नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और मानव संसाधन के बेहतरीन समन्वय का भी प्रतीक है।
फ्यूचर बैटल स्पेस की अवधारणा को साकार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-सक्षम डेटा एनालिटिक्स, ड्रोन निगरानी और सेंसर-नेटवर्क आधारित ऑपरेशन का भी प्रदर्शन किया गया। यह अभ्यास केवल थलसेना तक सीमित नहीं है। ट्राय-सर्विसेज फ्रेमवर्क के तहत भारतीय नौसेना और वायुसेना की भी सक्रिय भागीदारी रही। इससे संयुक्त फोर्सेज की वास्तविक युद्ध क्षमता और इंटर ऑपरेबिलिटी को नई दिशा मिली है।
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