Next Story
Newszop

1971 के युद्ध में ऊंटों का काफिला लेकर गए दादा, अब युद्ध की स्थितियों में पोते भी सेना में शामिल होने के लिए तैयार

Send Push

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में गुस्से की लहर है और सीमावर्ती जिले बाड़मेर के कस्बों और गांवों में भी हालात को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। मंगलवार रात वायुसेना की ओर से की गई एयर स्ट्राइक और बुधवार को मॉक ड्रिल के बाद सीमावर्ती इलाकों में लोग और अधिक सतर्क हो गए हैं।

सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के जेहन में 1965 और 1971 के युद्धों की यादें आज भी ताजा हैं। इन युद्धों में सीमावर्ती गांवों के नागरिकों ने सेना के साथ अदम्य साहस और सहयोग का परिचय दिया था। आज जब हालात फिर से तनावपूर्ण हैं तो वही जुनून और देशभक्ति फिर से सिर उठाती नजर आ रही है। लोगों का कहना है कि पाकिस्तान की ओर से बार-बार घुसपैठ, हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद की घटनाओं को अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।

युद्ध हुआ तो हम भी मोर्चे पर होंगे
1971 के युद्ध में सेना के साथ रहे चौहटन के ग्रामीणों ने पुराने अनुभव साझा किए और मौजूदा हालात में भी सहयोग का भरोसा जताया। चौहटन आगौर निवासी लड्डू राम ढाका कहते हैं कि हम करीब तीस लोग अपने ऊंटों से सेना को राशन, पानी और गोला-बारूद पहुंचाते थे। हम सेना के साथ नाला ढोला परचे की बेरी तक 85 किलोमीटर अंदर गए थे। उपरला चौहटन निवासी लड्डू राम जाणी ने कहा कि 1971 में बमबारी के बाद जिला कलेक्टर के आदेश पर हम 4 दिसंबर को सेना में भर्ती हुए थे। हम 13 महीने तक सेना के साथ एक ही कैंप में रहे। अब लड़ाई लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की है, लेकिन जमीन पर स्थानीय सहयोग का महत्व अभी भी उतना ही है।

नई पीढ़ी भी तैयार
पुराने वीर जवानों की अगली पीढ़ी भी सेना का साथ देने को आतुर है। लाड्डू राम ढाका के पोते भंवर लाल ढाका ने कहा कि मेरे दादा 1971 में चले गए थे, अब अगर मुझे मौका मिला तो मैं भी सीमा पर जाऊंगा और सेना की मदद करूंगा। मोबताराम जांगू के पोते पांचाराम जांगू ने कहा कि दादा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मैं भी उनके सपने को जिंदा रखने के लिए तैयार हूं।

Loving Newspoint? Download the app now