अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 15 अगस्त को अमेरिका के अलास्का में बातचीत होगी.
व्हाइट हाउस के मुताबिक़बातचीत का मुख्य मुद्दा यूक्रेन युद्ध को समाप्त करना होगा.
लेकिन इस बीच अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने ये कहकर खलबली मचा दी है कि अगर ट्रंप और पुतिन की बातचीत बेनतीजा रही तो भारत पर टैरिफ़ और बढ़ा दिया जाएगा.
ट्रंप की दलील है भारत पर जितना अधिक टैरिफ़ लगेगा, रूस पर उतना ही दबाव बनाया जा सकेगा.
जानकारों का कहना है कि भारत रूस से तेल ख़रीदकर वहां की अर्थव्यवस्था को सहारा दे रहा है इसलिए ट्रंप नाराज़ हैं.
डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि रूसी अर्थव्यवस्था को मिल रही इस मदद की वजह से पुतिन यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ाई बंद नहीं कर रहे हैं.
लिहाजा ट्रंप ने 7 अगस्त को भारत के ख़िलाफ़ 25 फीसदी टैरिफ़ को बढ़ाकर 50 फ़ीसदी करने का एलान किया था. हालांकि ये 27 अगस्त से लागू होगा.
इस बीच, दुनिया भर की नज़रें अलास्का में ट्रंप और पुतिन की बातचीत पर लगी हैं. लेकिन भारत को इसके नतीजों का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
आइए जानते हैं कि ट्रंप और पुतिन की बातचीत भारत के लिए क्यों इतनी अहम है.
टैरिफ़ का दबाव
भारत और अमेरिका के बीच अच्छे रिश्तों की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार को उम्मीद थी कि ट्रंप टैरिफ़ के मामले में भारत पर नरम रहेंगे.
लेकिन ट्रंप ने भारत को अमेरिकी निर्यात पर सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाला देश करार दिया.
इसके बाद उन्होंने भारत के निर्यात पर पहले तो 25 फ़ीसदी और फिर 7 अगस्त को अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने का एलान कर दिया.
इससे भारत सबसे ज़्यादा अमेरिकी टैरिफ़ झेलने वाले देशों में शामिल हो गया. ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत के ख़िलाफ़ ये अतिरिक्त टैरिफ़ लगाया है.
अगर इस बीच अमेरिका और भारत में ट्रेड डील नहीं होती है और 27 अगस्त को अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लागू हो जाता है तो भारत एशिया में अमेरिका का सबसे ज़्यादा टैक्स झेलने वाला कारोबारी साझेदार बन जाएगा.
भारत को रूस से तेल आयात की 'सजा' देने के बाद ट्रंप ने कहा था कि इससे रूसी अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगेगा.
भारत के ज़्यादातर निर्यातकों का कहना है कि वो बमुश्किल 10 से 15 फ़ीसदी टैरिफ़ ही झेल सकते हैं.
50 फ़ीसदी का टैरिफ़ बर्दाश्त करना उनकी क्षमता से बाहर की बात है.
जापानी ब्रोकरेज फ़र्म नोमुरा ने एक नोट में कहा, "अगर यह टैरिफ़ लागू होता है, तो यह एक तरह से 'व्यापारिक प्रतिबंध' जैसा होगा. टैरिफ़ से जो उत्पाद प्रभावित होंगे, उनका निर्यात एकदम से रुक सकता है."
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है. भारत अमेरिकी बाज़ार के लिए अपना 18 फ़ीसदी निर्यात करता है. यह भारत की जीडीपी का 2.2 फ़ीसदी है.
50 फ़ीसदी टैरिफ़ की वजह से भारत की जीडीपी में 0.2 से 0.4 फ़ीसदी तक गिरावट आ सकती है. इससे इस साल आर्थिक विकास छह फ़ीसदी से नीचे जा सकता है.
भारतीय निर्यातकों पर अमेरिकी टैरिफ़ की आंच दिखने लगी है. लेदर, टेक्सटाइल और जेम्स एंड ज्वैलरी जैसे भारत के प्रमुख निर्यात आधारित सेक्टरों के अमेरिकी ऑर्डर रद्द होने शुरू हो गए हैं.
क्योंकि टैरिफ़ की वजह से अमेरिकी कारोबारियों के लिए भारतीय सामान महंगे हो गए हैं.
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भारत ने पिछले तीन दशकों में अमेरिका के साथ रिश्ते मजबूत करने पर काफी निवेश किया है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़त को रोकने के लिए अमेरिका को भी भारत की जरूरत है.
कहा जा रहा है कि अगर रूस से तेल खरीदने की वजह से अमेरिका भारत को खुद से दूर करने की कोशिश करता है तो ये दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को कमजोर होगा.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और भारत-अमेरिकी संबंधों पर ख़ास नजऱ रखने वाले प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, ''इस समय भारत के ख़िलाफ़ अमेरिका का रवैया काफी व्यक्तिगत मामला लगता है."
वे कहते हैं, "लगता है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को अपमानित करना चाहते हैं. मामला तेल ख़रीद का नहीं है. चीन रूस से भारत की तुलना में ज्यादा तेल खरीदता है, लेकिन ट्रंप चीन के ख़िलाफ़ अतिरिक्त टैरिफ़ नहीं लगा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 90 दिनों की मोहलत दे रखी है.''
प्रेमानंद का मानना है, ''अमेरिका भारत के साथ अपने रणनीतिक समीकरण की समीक्षा करना चाह रहा है. इसलिए टैरिफ़ एक बहाना है. चूंकि अमेरिका भारत पर दबाव बनाना चाहता है इसलिए वो पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है."
"इसलिए इस बातचीत का चाहे जो नतीजा निकले, ट्रंप प्रशासन पर भारत का दबाव बना रहेगा.''
विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप और पुतिन की बातचीत के नतीजे भारत और अमेरिका के रिश्ते तय नहीं करेंगे.
उनका मानना है कि 'आत्ममुग्ध' ट्रंप की रणनीति ही आने वाले दिनों में भारत और अमेरिका के रिश्ते तय करेगी.
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पारंपरिक तौर भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने अमेरिका, इसराइल और फ़्रांस से हथियार खरीदना शुरू किया है.
अभी भी भारत सबसे ज्यादा हथियार रूस से ही ख़रीदता है. 2018 से 2023 के बीच भारत ने रूस से 13 अरब डॉलरके हथियार ख़रीदे थे.
और आगे के लिए दस अरब डॉलर के हथियारों का ऑर्डर दिया था. रूस के 20 फ़ीसदी हथियार अकेले भारत ख़रीदता है.
रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी ने बीबीसी को बताया था, ''रक्षा सहयोग में भारत के पास रूस के अलावा विकल्प बहुत कम है. आज की तारीख़ में 60 से 70 फ़ीसदी सैन्य उपकरण यूएसएसआर या रूस के हैं."
उनका कहना था, "इन हथियारों और मशीनों की मेंटेनेंस, सर्विसिंग के साथ उनके स्पेयर पार्ट्स को अपग्रेड करने के मामले में भारत पूरी तरह से रूस पर निर्भर है."
"संभव है कि रूस से भारत नए उपकरण ना ले लेकिन पुराने उपकरणों की अगले दस सालों तक मेंटेनेंस रूस की मदद के बिना बहुत मुश्किल होगी.''
भारत और अमेरिका के रिश्तों पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अमेरिका आगे चलकर भारत को रूस से हथियार खरीदने के लिए सज़ा दे तो मुश्किल खड़ी हो सकती है.
इससे भारत-अमेरिका के रिश्ते और बिगड़ेंगे. इसलिए भारत चाहेगा कि ट्रंप और पुतिन की बातचीत सफल रहे और ऐसी स्थिति न आए.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के राजनीति शास्त्र विभाग की प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी कहती हैं कि जिस तरह रूस से तेल ख़रीदने पर भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ़ बढ़ाया जा रहा है उसी तरह हथियार ख़रीदने पर भी अमेरिका की नाराजगी सामने आ सकती है.
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विशेषज्ञों का कहना है पुतिन और ट्रंप की बातचीत की सफलता भारत की जियोपॉलिटिकल जरूरतों के लिए बहुत जरूरी है.
भारत के लिए इस समय सिर्फ़ अमेरिका ही नहीं दुनिया की दूसरी बड़ी ताक़तों के साथ संबंध बेहतर बनाए रखना बेहद जरूरी है.
जानकारों का मानना है कि भारत इस समय रूस की तरफ़ झुकता हुआ दिख रहा है, लेकिन उसके लिए अभी बेहद जरूरी है कि वो अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करे तभी वो सामरिक तौर पर भी मजबूत बन सकता है.
और इसके लिए जरूरी है कि वो रूस के साथ-साथ अमेरिका को भी मजबूती से अपने साथ लेकर चले.
रेशमी काज़ी का मानना है कि फिलहाल टैरिफ़ को लेकर भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते थोड़े तल्ख़ दिख रहे हैं लेकिन ये कोई बड़ी बात नहीं है.
वे कहती हैं, "इसे ट्रेड डील के ज़रिये ठीक किया जा सकता है. लेकिन भारत के लिए जरूरी है कि वो अमेरिका से रिश्ते न बिगाड़े. भारत की आर्थिक मजबूती के लिए ये बेहद अहम रणनीति होगी."
उनका कहना है, "ट्रंप और पुतिन के बीच सफल बातचीत सिर्फ़ भारत की आर्थिक मजबूती के लिए ही नहीं बल्कि उसकी सुदृढ़ भू-राजनीतिक स्थिति के लिए भी जरूरी है."
उनका मानना है कि अगर ये बातचीत कामयाब रही तो भारत, अमेरिका और रूस दोनों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रख सकेगा और इसका उसे काफ़ी फ़ायदा होगा.
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ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति झुकाव बढ़ता हुआ दिखा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान एक ऐसा फ़ैक्टर है जिसका इस्तमेाल कर अमेरिका और चीन, दोनों भारत को घेरना चाहते हैं. अमेरिका ने भी इस बार यही किया है.
प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, ''भारत की विदेश नीति में पाकिस्तान एक कमजोर कड़ी है और इसका इस्तेमाल भारत को परेशान करने के लिए किया जाता है."
उनका मानना है, "चूंकि पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर है इसलिए अमेरिका या चीन का वहां के नेताओं को प्रभाव में लाना आसान है. इसलिए उनका इस्तेमाल कर भारत को परेशानी में रखना उनके लिए आसान हो जाता है.''
प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि भारत को अस्थिर बनाए रखने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया जाता है.
वो कहते हैं कि पाक़िस्तान फ़ैक्टर भारतीय विदेश नीति की स्वायत्तता को चुनौती देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
प्रेमानंद मिश्रा के मुताबिक़ नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति का सबसे अहम पहलू है भारत की रणनीतिक स्वायत्तता. अमेरिका और चीन जैसे देश पाकिस्तान का इस्तेमाल कर हमेशा भारत की इस नीति को चुनौती देने की कोशिश करेंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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