जब एक इसराइली हवाई हमले ने दक्षिणी लेबनान में उनके एम्पलॉयर के घर पर हमला किया, तब अंडाकू (उनका असली नाम नहीं) ने खुद को अकेला, अंदर बंद और डरा हुआ पाया.
24 वर्षीय केन्याई महिला पिछले आठ महीनों से लेबनान में एक घरेलू कामगार की तरह काम कर रही हैं.
लेकिन, वह कहती हैं कि उनका पिछला महीना सबसे मुश्किल रहा है, क्योंकि इसराइल की सेना ने देश भर में हिज़बुल्लाह के ठिकानों पर बमबारी तेज़ कर दी है.
उन्होंने बीबीसी न्यूज़ अरबी को बताया, "बहुत सारे बम धमाके हुए. यह बहुत ही ज़्यादा थे. मेरे एम्प्लॉयर ने मुझे घर में बंद कर दिया और खुद की जान बचाने के लिए वहाँ से भाग गए".
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएधमाकों की आवाज़ से अंडाकू सदमे में हैं. वह इस बात को भूल चुकी हैं कि उनके एम्प्लॉयर्स के लौटने से पहले वह कितने दिनों से घर में अकेले बंद हैं.
"जब वे वापस लौटे, तो उन्होंने मुझे बाहर फेंक दिया. उन्होंने मुझे कभी भी पैसे नहीं दिए और मेरे पास जाने के लिए भी कोई जगह नहीं थी".
वह कहती हैं कि वह खु़श क़िस्मत थी कि उनके पास राजधानी बेरूत के लिए बस पकड़ने के पर्याप्त पैसे थे. यह कहानी केवल अंडाकू की नहीं है.
पिछले शुक्रवार, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा था कि लेबनान में सरकार द्वारा चलाए जा रहे लगभग 900 आश्रय स्थल भर चुके थे.
इसकी वजह इसराइल-हिज़्बुल्लाह संघर्ष का बढ़ना है. अधिकारियों ने लेबनान में हज़ारों महिला घरेलू कामगारों को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की.
ये भी पढ़ेंअंतर्राष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईएमओ) के मुताबिक, लेबनान में लगभग 1 लाख 70 हज़ार प्रवासी श्रमिक हैं. इनमें से कई महिलाएं केन्या, इथियोपिया, सूडान, श्रीलंका, बांग्लादेश और फिलीपींस की रहने वाली हैं.
लेबनान में आईओएम के कार्यालय प्रमुख मैथ्यू लुसियानो ने जेनेवा में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, "हमें प्रवासी घरेलू कामगारों से जुड़ीं ऐसी रिपोर्ट्स मिल रही हैं, जिनमें उन कामगारों को उनके लेबनानी एम्पलॉयर्स ने सड़कों पर या उनके घरों में अकेला छोड़ दिया गया है, और उनके एम्पलॉयर भाग चुके हैं."
BBC अंतर्राष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईएमओ) के मुताबिक, लेबनान में लगभग 1 लाख 70 हज़ार प्रवासी श्रमिक हैंकई प्रवासी घरेलू कामगार अपने परिवारों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने के लिए लेबनान का रूख़ करते हैं.
अफ़्रीकी घरेलू कामगार के लिए औसतन मासिक वेतन लगभग 250 डॉलर के आस-पास होने का अनुमान है, जबकि एशियाई कामगार 450 डॉलर तक कमा सकते हैं.
लेबनान में प्रवासी घरेलू कामगारों को कफ़ाला यानी जमानती सिस्टम का पालन करना पड़ता है, जो प्रवासी श्रमिकों के लिए संरक्षित अधिकारों की गारंटी नहीं देता है.
यह सिस्टम एम्प्लॉयर्स को उनके पासपोर्ट ज़ब्त करने और उनकी मजदूरी रोकने की अनुमति देता है. उन्हें स्थानीय एजेंसियों की मदद से काम मिलता है.
आईओएम के प्रवक्ता जो लोरी कहते हैं, "कफ़ाला प्रणाली के अंदर कानूनी सुरक्षा की कमी और कामगार के कहीं जाने पर प्रतिबंध की बात है."
"इस कारण कई कामगार शोषणकारी परिस्थितियों में फंस सकते हैं. इसकी वज़ह से प्रवासी श्रमिकों में दुर्व्यवहार, अलगाव और मनोवैज्ञानिक सदमे के मामले देखने को मिलते हैं".
उन्होंने बताया, "इसके अलावा, हम ऐसे मामलों से भी परिचित हैं, जिसमें प्रवासियों को लेबनानी नागरिक अपने घरों में बंद करके भाग जा रहे हैं, ताकि प्रवासी लोग उनकी संपत्तियों की देखभाल करे".
जाने के लिए कोई जगह नहींमीना (उनका असली नाम नहीं है) युगांडा से हैं. उन्होंने एक साल और चार महीने तक लेबनान में घरेलू कामगार के रूप में काम किया है.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि वह जिस परिवार के लिए काम करती थीं, उन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया. इसके बाद उन्होंने (मीना) वहां से भागने और अपनी एजेंसी में वापस लौटने का फ़ैसला किया.
मीना ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें वहां से मदद मिलेगी, लेकिन वह यह जानकर हैरान रह गई कि घर लौटने से पहले उन्हें दो साल के अनुबंध पर दूसरे परिवार के लिए काम करना होगा.
26 वर्षीय मीना ने बताया, "जब मैं वापस एजेंसी लौटी तो मैंने उन्हें बताया कि मैंने अपने टिकट के लिए भुगतान करने और घर वापस लौटने के लिए पर्याप्त काम किया है. लेकिन उन्होंने मेरे पैसे ले लिए और मुझे घर वापस भेजने के लिए दो साल एक घर में काम करने को कहा".
विस्फोटों की लगातार आवाज़ों के साथ रहने की वजह से मीना के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा. वह अपने घरेलू कामों को ठीक से नहीं कर पा रही थी इसलिए उन्होंने अपने नए एम्प्लॉयर से काम छोड़ने की बात कही थी.
वह उत्तर-पूर्वी लेबनान में बेका घाटी के एक शहर बालबेक में एक परिवार के लिए काम कर रही थी.
वो कहती हैं, "परिवार ने मुझे पीटा, धक्का दिया और बाहर फेंक दिया...उस समय बाहर ख़ूब बमबारी हो रही थी. जब मैं चली गई, तो मेरे पास कहीं जाने के लिए कोई जगह नहीं थी".
केन्या की एक अन्य घरेलू कामगार 24 वर्षीय फनाका ने कहा कि उनकी एजेंसी उन्हें हर दो महीने में अलग-अलग घरों में काम करने के लिए भेजती थी, जिसकी वजह से उन्हें हर वक्त सिर दर्द बना रहता था.
वो कहती हैं, "मैं काम पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन कोई भी पूरी तरह से निपुण पैदा नहीं होता".
महिलाओं का कहना है कि सड़कों पर रहने के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि कई आश्रय स्थलों ने उन्हें पनाह देने से इनकार कर दिया था.
महिलाओं को इसकी वजह यह बताई गई थी वो आश्रय स्थल विस्थापित हुए लेबनानी नागरिकों के लिए आरक्षित थे, न कि विदेशियों के लिए.
तीनों महिलाएं कारिटस लेबनान पहुंचने में कामयाब रही, जो एक गैर-सरकारी संगठन है. यह संगठन 1994 से प्रवासी श्रमिकों के लिए सहायता और सुरक्षा प्रदान कर रहा है.
बीबीसी को भेजी गई ऑडियो रिकॉर्डिंग में, सिएरा लियोन से प्रवासी श्रमिकों ने बताया कि उनमें से दर्जनों बेरूत की सड़कों पर फंसे हुए थे और उन्हें खाने की सख़्त ज़रूरत थी.
अन्य लोगों ने स्थानीय मीडिया को बताया कि उन्हें स्कूलों में सरकार द्वारा चलाए जा रहे शेल्टर्स में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि वे लेबनानी नहीं थे.
बीबीसी ने स्थानीय अधिकारियों से बातचीत की, तो उन्होंने किसी भी तरह के भेदभाव किए जाने की बात से इनकार कर दिया.
शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बीबीसी को बताया, "विदेशी घरेलू कामगारों के लिए कोई विशिष्ट केंद्र तय नहीं किए गए हैं, लेकिन साथ ही, उन्हें प्रवेश से मना नहीं किया गया है."
इस बात से यह समझा जा सकता है कि कुछ प्रवासी श्रमिक आधिकारिक आश्रय स्थलों में जाने से इसलिए भी बच रहे हैं कि उनके कानूनी दस्तावेज़ अधूरे हैं, जिसका खामियाज़ा उनको उठाना पड़ सकता है.
कारिटस लेबनान में सुरक्षा विभाग के प्रमुख हैं हेसेन साया कोरबान. उन्होंने बताया कि उनका एनजीओ मौजूदा समय में लगभग 70 प्रवासी घरेलू कामगारों को शरण दे रहा है, उनमें खासतौर पर महिलाएं हैं, जिनके साथ बच्चे हैं.
वह कहती हैं कि 250 घरेलू श्रमिकों को आश्रय देने के लिए ज़्यादा पैसों की ज़रूरत है, जिन्हें या तो उनके एम्प्लॉयर्स द्वारा छोड़ दिया गया है या वे बेघर हैं और उनके आधिकारिक दस्तावेज़ों को ज़ब्त कर लिया गया है.
"हम उन्हें सभी ज़रूरी सहायता प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं, फिर चाहे वह कानूनी हो, मानसिक हो या शारीरिक हो".
वह कहती हैं कि कई घरेलू कामगारों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद की ज़रूरत है, क्योंकि उन्हें सदमा पहुंचा है.
अक्टूबर की शुरुआत से, आईओएम को 700 से ज्यादा नए अनुरोध उन लोगों से मिले हैं, जो अपने मूल देशों में लौटने के लिए मदद मांग रहे हैं.
कोरबान का कहना है कि कारिटस, दूसरे गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ आईओएम, विभिन्न दूतावासों, वाणिज्य दूतावासों और लेबनानी सुरक्षा सेवाओं के साथ तालमेल बैठाकर छोड़े गए घरेलू कामगारों को देश छोड़ने में मदद कर रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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