संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एड प्रोग्राम ने चेतावनी दी है कि ग़ज़ा पट्टी में क़रीब हर तीन व्यक्तियों में से एक कई दिनों तक बिना खाए रह रहा है.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ग़ज़ा में 'भुखमरी' है, जबकि इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस बात से इनकार किया है.
पिछले कुछ दिनों में इसराइल ने, जो ग़ज़ा में भुखमरी के दावों को नकारता है, वहाँ मदद पहुँचाने के लिए 'अस्थाई संघर्ष विराम' का ऐलान किया है.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के प्रमुख टॉम फ़्लेचर का कहना है कि भुखमरी रोकने के लिए 'बहुत बड़ी मात्रा में' भोजन की ज़रूरत है.
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संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी (यूएनआरडब्यूए) का कहना है कि ग़ज़ा शहर में हर पाँच बच्चों में से एक कुपोषण का शिकार है और ऐसे मामलों की संख्या हर दिन बढ़ रही है.
संयुक्त राष्ट्र ने बताया है कि अस्पतालों में ऐसे मरीज़ भर्ती हो रहे हैं जो भूख के कारण बेहद कमज़ोर हो गए हैं और कई लोग सड़कों पर गिर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने अभी तक ग़ज़ा में औपचारिक रूप से अकाल घोषित नहीं किया है, लेकिन इंटीग्रेटेड फ़ूड सिक्योरिटी फ़ेज़ क्लासिफ़िकेशन (आईपीसी) ने चेतावनी दी है कि यह इलाक़ा गंभीर अकाल के ख़तरे में है.
इंटीग्रेटेड फूड सिक्योरिटी फेज क्लासिफिकेशन (आईपीसी) एक वैश्विक मानक है, जिसका इस्तेमाल यह आकलन करने के लिए किया जाता है कि किसी इलाक़े की आबादी को पर्याप्त, सस्ता और पौष्टिक भोजन हासिल करने में कितनी मुश्किल हो रही है.
इसका सबसे गंभीर स्तर — फे़ज़ 5 (अकाल) — होता है. किसी जगह को फे़ज़ 5 (अकाल) की श्रेणी में तब रखा जाता है जब:
- 20% घरों में बेहद खाने की कमी हो,
- कम से कम 30% बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हों,
- और हर 10,000 लोगों में रोज़ाना कम से कम 2 वयस्कों या 4 बच्चों की मौत भूख, कुपोषण या बीमारी के कारण हो.
12 मई को जारी आईपीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ग़ज़ा की पूरी आबादी संकट (फे़ज़ 3) या उससे ऊपर की श्रेणी में है.
अनुमान है कि मई से सितंबर 2025 के बीच क़रीब 4.69 लाख लोग गंभीर खाद्य संकट (फे़ज़ 5) की स्थिति में होंगे.
जब हालात इतने गंभीर हो जाते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र, कभी-कभी संबंधित देश की सरकार और अंतरराष्ट्रीय राहत संगठनों के साथ मिलकर औपचारिक रूप से अकाल घोषित करता है.
भुखमरी लंबे समय तक पर्याप्त खाना न मिलने के कारण होती है और इसका मतलब है कि शरीर को अपनी ज़रूरी ज़रूरतों के लिए पर्याप्त कैलोरी नहीं मिल रही है.
आमतौर पर शरीर खाने को तोड़कर ग्लूकोज़ बनाता है, लेकिन जब खाना नहीं मिलता, तो शरीर लिवर और मांसपेशियों में जमा ग्लाइकोजन को तोड़कर ख़ून में ग्लूकोज़ छोड़ता है.
जब ग्लाइकोजन भी खत्म हो जाता है, तो शरीर पहले चर्बी और फिर मांसपेशियों को तोड़कर ऊर्जा बनाता है.
भुखमरी से फेफड़े, पेट और प्रजनन अंग सिकुड़ सकते हैं और इसका असर दिमाग़ पर भी पड़ सकता है. इसके कारण हेलुसिनेशन (भ्रम), डिप्रेशन और घबराहट हो सकती है.
कुछ लोग सीधे भुखमरी से मर जाते हैं, लेकिन गंभीर कुपोषण से पीड़ित लोग अक्सर सांस या पाचन तंत्र के संक्रमण से जान गंवाते हैं, क्योंकि भुखमरी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है.
भुखमरी का असर अलग-अलग लोगों पर अलग तरीक़े से होता है.
यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्लासगो में ह्यूमन न्यूट्रिशन की सीनियर रिसर्च फेलो (ऑनरेरी) प्रोफेसर शार्लोट राइट कहती हैं, "आप अचानक गंभीर रूप से कुपोषित नहीं होते. इन बच्चों को पहले खसरा, निमोनिया, दस्त या इसी तरह की कोई बीमारी हो चुकी होती है."
"जो बच्चे पहले स्वस्थ थे लेकिन अब भुखमरी का शिकार हो गए हैं, अगर उन्हें खाना मिले तो उनमें अभी भी खाने और पचाने की ताकत होती है."
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बचपन में खाने की कमी पूरी ज़िंदगी के लिए असर छोड़ सकती है, जिसमें दिमागी विकास में रुकावट और लंबाई का रुक जाना शामिल है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, स्टंटिंग का मतलब है बच्चों में खराब पोषण, बार-बार संक्रमण और पर्याप्त मानसिक देखभाल की कमी के कारण विकास और बढ़त में रुकावट. अक्सर ये बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से छोटे दिखते हैं.
संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन के अनुसार, जो लोग कुपोषण से पीड़ित होते हैं, उनके यहां कुपोषित बच्चों के पैदा होने की आशंका ज़्यादा होती है.
यूनिसेफ़ का कहना है कि गर्भावस्था में ख़राब आहार मांओं में एनीमिया, प्री-एक्लेम्प्सिया, रक्तस्राव और मौत का कारण बन सकता है. साथ ही बच्चों का मृत पैदा होना, कम वजन, शरीर का सूखना और विकास में देरी हो सकती है.
कुपोषित माँएं अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए पर्याप्त पौष्टिक दूध बनाने में भी मुश्किल झेल सकती हैं.
डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (एमएसएफ़) के डॉ. नुरुदीन अलीबाबा जो कुपोषित बच्चों का इलाज करते हैं, कहते हैं कि इसका असर जीवनभर रह सकता है.
डॉ. नुरुदीन अलीबाबा बताते हैं, "स्टंटेड ग्रोथ वापस नहीं हो सकती यानी कुपोषण का समय निकलने के बाद भी बच्चे का कद छोटा रह जाएगा, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होगा. अक्सर इनमें सीखने की क्षमता की कमी भी रहती है जो स्कूल जाने तक पता नहीं चलती."
"कुपोषण रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी दबा देता है, जिससे इन्हें संक्रमण जल्दी हो जाते हैं. एक और ज़रूरी बात जो बहुत लोग नहीं समझते, यह है कि लड़कियों में कुपोषण एक स्तर पर बांझपन का कारण बन सकता है. और अगर वे गर्भवती होती भी हैं तो उनके बच्चों का वजन बहुत कम होने की संभावना ज़्यादा होती है."
एक और बीमारी, ऑस्टियोपोरोसिस हो सकती है.
डॉ. अलीबाबा ने बताया, "कमज़ोर हड्डियां उम्र बढ़ने पर इतनी नाज़ुक हो जाती हैं कि वे शरीर का वजन ठीक से नहीं संभाल पातीं और छोटी-सी चोट से भी हड्डी टूट सकती है."
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प्रोफे़सर राइट का कहना है, "इस संकट से निपटने के लिए दो चीजें ज़रूरी हैं- ग़ज़ा में ज़्यादा मात्रा में खाना पहुंचाना और महंगे लेकिन ज़रूरी पोषण वाले विशेष खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना. खाना तुरंत बच्चों और उनकी माँओं तक पहुंचाया जाना चाहिए."
"नवजात के लिए मां का दूध सबसे सुरक्षित और साफ़ विकल्प है, लेकिन इसके लिए मां को खाना मिलना चाहिए ताकि वह बच्चे को दूध पिला सके. यह सुनिश्चित करना असली चुनौती है कि खाना सच में महिलाओं और बच्चों तक पहुंचे, न कि सिर्फ पुरुषों तक."
बीबीसी अरबी की स्वास्थ्य संवाददाता स्मिता मुंडासाद, जो डॉक्टर के तौर पर प्रशिक्षित भी हैं, बताती हैं कि कुपोषण के बहुत गंभीर असर हो सकते हैं, खासकर बच्चों पर और इसका इलाज हमेशा आसान नहीं होता है.
उन्होंने कहा, "गंभीर मामलों में, जब कोई खाना निगल नहीं सकता, तो अस्पताल या क्लिनिक में विशेष पोषण वाला खाना देना पड़ सकता है और संक्रमण के लिए अतिरिक्त इलाज भी करना पड़ सकता है. कुछ मामलों में, किसी को बहुत जल्दी या ग़लत खाना देना खतरनाक हो सकता है."
स्मिता मुंडासाद ने बताया, "इसलिए ज़रूरी सिर्फ खाना पहुंचाना नहीं है बल्कि सही खाना पहुंचाना और अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था होना भी ज़रूरी है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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