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अरविंद कुमार मीणा: संघर्ष से सफलता की कहानी

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एक प्रेरणादायक यात्रा

एक प्रसिद्ध पंक्ति है, "जब हौसला ऊंची उड़ान का बना लिया, तब आसमान का कद देखना फिजूल है।" इस विचार को साकार किया है एक ऐसे व्यक्ति ने, जो मिट्टी के एक साधारण घर में रहता है। उसने अपने अदम्य साहस और मेहनत से एक ऐसा कार्य किया है, जिसे बहुत से लोग नहीं कर पाते।


कठिनाइयों का सामना

इस व्यक्ति ने अपने जीवन में कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था, लेकिन उसने कभी भी अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत नहीं छोड़ी। उसकी मेहनत और धैर्य ने उसे इस मुकाम तक पहुँचाया। यह कहानी सुनकर रामधारी सिंह 'दिनकर' की पंक्तियाँ याद आती हैं, "खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़।"


अरविंद कुमार मीणा की कहानी

यह प्रेरणादायक कहानी है अरविंद कुमार मीणा की, जो राजस्थान के दौसा जिले के नाहरखोहरा गांव में रहते हैं। उनका परिवार बेहद गरीब है, लेकिन उन्होंने कठिन परिश्रम और धैर्य के बल पर सफलता की एक नई कहानी लिखी है।


पिता का साया खोना

अरविंद का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, और उन्होंने मात्र 12 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया। इस घटना ने उनके परिवार की मुश्किलों को और बढ़ा दिया।


मां का संघर्ष

पिता के निधन के बाद, अरविंद की मां ने अपने बेटों की जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाया। अरविंद ने मिट्टी के घर में रहकर अपनी शिक्षा पूरी की।


शिक्षा छोड़ने का विचार

कभी-कभी कठिनाइयाँ इंसान को तोड़ देती हैं। अरविंद के साथ भी ऐसा हुआ, और उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन उनकी मां ने उन्हें हिम्मत दी, जिससे वह फिर से पढ़ाई में जुट गए।


सफलता की ओर कदम

अरविंद की मेहनत रंग लाई, और उनका चयन सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में सहायक कमांडेंट के पद पर हुआ। लेकिन उनकी मंजिल कुछ और थी। उन्होंने सेना में नौकरी के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी जारी रखी। अंततः, उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में 676वां रैंक और SC वर्ग में 12वां स्थान प्राप्त किया। इस तरह, अरविंद ने अपनी और अपने परिवार की तक़दीर बदल दी।


प्रेरणा का स्रोत

अरविंद की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सुविधाओं की कमी का रोना रोते हैं और जीवन में कुछ भी करने से पहले हार मान लेते हैं।


अरविंद की तस्वीरें
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