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1 साल की उम्र में खो दिया था पिता को, मां ने मज़दूरी कर बेटों को पढ़ाया और बेटा बन गया IAS‟ ⁃⁃

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एक बहुत ही सुंदर सी पंक्ति है कि, “जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का। फिर देखना फिजूल है कद आसमान का।” जी हां इसी उक्ति को चरितार्थ किया है एक मिट्टी के मकान में रहने वाले व्यक्ति ने। इस व्यक्ति ने अपने जज़्बे और हौसलें के बल पर ऐसा कारनामा कर दिखाया है। जो अच्छे अच्छे नहीं कर पाते है।

बता दें कि इस व्यक्ति ने कम उम्र में ही पिता का साया खो दिया था, लेकिन कुछ कर गुजरने की हिम्मत और परिस्थितियों से लड़ने का धैर्य कभी नहीं खोया। जिसकी बदौलत इस मुक़ाम को हासिल किया। जिसे सुनने के बाद रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कुछ पंक्तियां याद आती है कि, “खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़।” वास्तव में इस युवक ने ऐसा काम कर दिखाया है। जिसके बाद रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्ति यर्थाथ के धरातल पर उतरती दिखती है।

आप सभी इस सोच में पड़े कि किस व्यक्ति की सफ़लता के लिए इतनी भूमिका गढ़ी जा रही। तो उससे पहले आइए हम ही आपको पूरी कहानी बताते हैं…

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जी हां बता दें कि यह कहानी है अरविंद कुमार मीणा की। जो कि राजस्थान के ज़िला दौसा, सिकराया उपखंड क्षेत्र के नाहरखोहरा गांव में रहते हैं। इनका परिवार बेहद ग़रीब है, लेकिन इन्होंने मेहनत और धैर्य के बल पर ग़रीबी को दरकिनार करते हुए क़ामयाबी की एक ऐसी लक़ीर खींची। जो एक सुविधा संपन्न परिवार के बच्चें तक नहीं कर पाते।

12 साल की उम्र में खो दिया था पिता को…

बता दें कि एक बेहद ग़रीब परिवार में जन्में अरविंद कुमार मीणा के सिर से उनके पिता का साया मात्र 12 साल की उम्र में उठ गया था। एक तो इनका परिवार पहले से ही ग़रीबी की मार झेल रहा था और पिता की मौत के बाद परिवार की मुश्किलें और बढ़ गई थी।

मां ने मज़दूरी कर बेटों को पढ़ाया…

पिता के गुज़र जाने के बाद अरविंद की मां ने बेटों की ज़िम्मेदारी संभाली। ग़रीबी की वजह से ये परिवार बीपीएल श्रेणी में आ गया। मेंहनत मज़दूरी करके अरविंद की मां ने उन्हें पढ़ाया। मिट्टी के घर में रहकर अरविंद ने स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई पूरी की।

एक समय स्कूल छोड़ने का बना चुके थे मन…

गौरतलब हो कि जब मुश्किलें इंसान को अंदर से तोड़ देती है। ऐसे में ख़ुद को समेट-सहेज कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल होता है। कुछ ऐसा ही अरविंद के साथ भी हुआ। घर की माली हालात ने अरविंद को तोड़ दिया और उन्होंने पढ़ाई-लिखाई छोड़ देने का मन तक बना लिया था। फ़िर मां ने बेटे का हौंसला बढ़ाया और हिम्मत दी। मां के साथ ने अरविंद को ताकत दी और वो दोबारा मेहनत करने में जुट गए।

जिसके बाद अरविंद की मेहनत रंग लाई और उनका चयन सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में सहायक कमांडेंट पोस्ट पर हो गया। इसके बाद अरविंद यहीं नहीं रुके, क्योंकि अरविंद की मंजिल कुछ और थी। ऐसे में उन्होंने सेना में नौकरी करने के साथ ही यूपीएससी (UPSC) की तैयारी भी जारी रखी। फ़िर आख़िर में आया वह समय। जिसके लिए अरविंद निरंतर प्रयासरत थे। बता दें कि अरविंद ने यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा दी। अरविंद ने देशभर में 676वां रैंक और SC वर्ग में 12वां स्थान प्राप्त किया। ऐसे में मिट्टी के इस लाल ने कमाल करते हुए अपनी और अपने परिवार की तक़दीर बदल दी। वास्तव में इस मिट्टी के लाल की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत का काम करेगी, जो सुविधा न मिलने का रोना रोते हैं और जीवन में कुछ भी करने से पहले ही हार मानकर बैठ जाते हैं।

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