वाराणसी, 30 सितंबर . नवरात्रि के आठवें दिन यानी अष्टमी तिथि को मां महागौरी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मां महागौरी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं, जिन्हें शांति, करुणा और शुद्धता की देवी माना जाता है.
इस दिन भक्तजन मंदिरों में जाकर मां महागौरी की उपासना करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. पूरे देश में मां महागौरी के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से एक मंदिर शिव की नगरी काशी में स्थित है.
काशी के इस मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही साधक के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां की पौराणिक कथाएं भी इसे और विशेष बनाती हैं.
कहा जाता है कि मां महागौरी ने देवों के देव भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. तपस्या के कारण उनका वर्ण कृष्ण (काला) हो गया था. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा के पवित्र जल से उनके शरीर को धोया, जिससे उनका रूप विद्युत के समान तेजस्वी और गौर वर्ण का हो गया. तब से मां पार्वती को महागौरी नाम से जाना गया और वे काशी नगरी में विराजमान हुईं.
मान्यता है कि यहां मां महागौरी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को पापों से मुक्ति मिलती है. जो भी श्रद्धालु नवरात्रि के दौरान मां महागौरी को फूल और लाल चुनरी अर्पित करता है, उसके जीवन के दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं. नवरात्रि के समय इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है, जो अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां पहुंचते हैं.
मां महागौरी की पूजा शांति, शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाती है. भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ माता की आराधना करते हैं. मां महागौरी के चरणों में समर्पित होकर श्रद्धालु अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति करते हैं.
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पीआईएम/जीकेटी
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