एनडीए सरकार द्वारा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को हटाने के लिए न्यूनतम 30 दिनों की जेल की सजा का प्रावधान करने वाले तीन विधेयक विपक्षी खेमे में अब बहस का विषय बन गए हैं। भले ही इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेज दिया गया हो, लेकिन इस समिति में विपक्ष की भागीदारी को लेकर इंडिया गठबंधन दो धड़ों में बंटता दिख रहा है। संसद में इन बिलों का विरोध तो विपक्ष ने एकजुट होकर किया था, लेकिन अब जेपीसी में शामिल होने को लेकर अलग-अलग दलों की स्थिति स्पष्ट रूप से विभाजित हो गई है।
जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में कांग्रेस
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व इस समिति में भाग लेने के पक्ष में है। पार्टी का मानना है कि जेपीसी की जांच में शामिल होकर विरोधी दल अपनी आलोचनाएं दर्ज करवा सकते हैं और जनता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस (TMC) और समाजवादी पार्टी (SP) ने इसे ‘तमाशा’ करार देते हुए जेपीसी से दूरी बनाए रखने का निर्णय लिया है। इन दोनों दलों ने समिति में शामिल होने के अपने विरोध को सार्वजनिक रूप से जताया है। शिवसेना इस मामले पर विचार कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) ने जेपीसी से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है।
जेपीसी पर इंडिया ब्लॉक की स्थिति
दल - स्थिति
कांग्रेस - समर्थन
वाम दल - समर्थन
टीएमसी - विरोध
सपा - विरोध
शिवसेना - विरोध
इंडिया गठबंधन के लिए क्या है महत्व
तृणमूल और सपा का जेपीसी से बाहर रहना क्षेत्रीय दलों की विशिष्ट स्थिति को दर्शाता है। यह कदम विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मानसून सत्र में इंडिया ब्लॉक ने एकता का प्रदर्शन किया था। वहीं, वामपंथी दल जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में हैं। कांग्रेस नेता डीएमके, एनसीपी, आरजेडी और जेएमएम जैसे सहयोगी दलों से भी इस समिति में शामिल होने के लिए बातचीत कर रहे हैं।
कांग्रेस को यह डर सताता है कि यदि विपक्ष जेपीसी का बहिष्कार करता है, तो समिति की कार्यवाही एकतरफा हो सकती है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अगर बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसे तटस्थ दल समिति में शामिल होते हैं, तो वे विपक्ष की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर अपनी राय रखेंगे। इस स्थिति पर अब नजर सभी दलों की रणनीति और आगामी निर्णय पर टिक गई है।
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