अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का दौरा भारत के लिए एक बड़ा मौका है। दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत की रूपरेखा तय कर ली है। भारत में अमेरिका अपनी कंपनियों के लिए पूरी तरह मुक्त बाजार चाहता है। लेकिन नई दिल्ली को अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते को आगे बढ़ाते हुए यह भी ख्याल रखना होगा कि उसका अपना हित प्रभावित न हो। सकारात्मक माहौल: अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने में भारत को भले न बख्शा हो, लेकिन चीन, वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में नरमी जरूर दिखाई। चीन के 245% के मुकाबले ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ लगाया और इसे भी 90 दिनों के लिए रोक दिया है। टैरिफ के इसी अंतर को कई एक्सपर्ट भारत के लिए बड़ा मौका बता रहे हैं। इस बुधवार से वॉशिंगटन में ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर दोनों देशों के वार्ताकार आमने-सामने बैठेंगे। इससे पहले वेंस की यात्रा बातचीत के लिए पॉजिटिव माहौल बनाने में मदद करेगी। भारत की चिंता: ट्रंप अपने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ कैंपेन को लेकर बहुत आक्रामक हैं। उनके प्रशासन का कहना है कि ट्रेड डील के जरिये अमेरिका व्यापार में संतुलन कायम करना चाहता है। लेकिन, इस संतुलन की एवज में जो मांगें की जा रही हैं, उन्हें भारत पूरी तरह स्वीकार नहीं कर सकता, मसलन - अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए बाजार खोल देना। छोटे दुकानदारों का हित: देश के उपभोक्ताओं, दुकानदारों-व्यापारियों से जुड़ी कुछ चिंताएं हैं, जिन्हें भारत को अमेरिका के सामने रखना होगा। भारत में बड़ी संख्या में छोटी दुकानों से लोगों को रोजगार मिला हुआ है, इसलिए परंपरागत रूप से ये लोग दिग्गज अमेरिकी ईकॉमर्स कंपनियों के विरोधी रहे हैं। इन दुकानदारों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए केंद्र सरकार ने ईकॉमर्स से संबंधित नियमों में पहले बदलाव भी किए थे। सीधी बात: इसके साथ अमेरिका अगर कृषि उत्पादों, मीट प्रॉडक्ट्स को लेकर भारत पर दबाव बनाता है तो भारतीयों हितों को संरक्षित रखना होगा। भारत में कृषि क्षेत्र राजनीतिक रूप से भी बहुत संवेदनशील है। इस तरह के मामलों में भारत को अपना रुख समझाना होगा। दोस्त की जरूरत: आज ट्रंप टैरिफ को लेकर भले ही चीन-भारत समेत दुनिया पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन उन्हें दोस्त की भी जरूरत है। उनके लिए भारत, चीन का विकल्प हो सकता है। भारत और अमेरिका ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। द्विपक्षीय समझौते से इसकी जमीन तैयार की जा सकती है।
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