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बेंगलुरू की सड़कों पर 'डबल लाइफ'! इन्फोसिस का एमप्लॉई बना बाइक टैक्सी राइडर, पैसों की कमी या है और कोई वजह?

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बेंगलुरु जैसे शहरों में ट्रैफिक एक बड़ी समस्या है। यहां ट्रैफिक में फंसे लोगों के लिए बाइक टैक्सी किसी वरदान से कम नहीं है। साथ ही ये कैब या ऑटो रिक्शा की तुलना में सस्ती होती है। लेकिन, क्या होगा अगर आपको पता चले कि आपका बाइक ड्राइवर किसी बड़ी कंपनी का एमप्लॉई है?

हाल ही में एक महिला यात्री ने एक पोस्ट शेयर की है, जिसमें वो बाइक टैक्सी से ट्रैवल कर रही होती है लेकिन अचानक ड्राइवर को कॉल पर बात करते देख दंग रह जाती है।
बाइक राइडर निकला इन्फोसिस का कर्मचारी image

दरअसल, कॉल पर बाइक टैक्सी राइडर इंग्लिश में कहता है, 'क्या मेरी आवाज आ रही है?' (Am I Audible?) ड्राइवर बिल्कुल कॉर्पोरेट अंदाज में किसी से बात कर रहा होता है। महिला के पूछने पर वो बताता है कि वो राइडर इन्फोसिस के कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट टीम में काम करता है।

चार्मिखा नागाल्ला ने लिंक्डइन पर अपनी इस अनोखी मुलाकात का किस्सा शेयर किया। उन्होंने बताया कि ये राइडर वीकेंड और सुबह के समय पैसे कमाने और खाली समय में फालतू की रील्स देखने से बचने के लिए बाइक टैक्सी चला लेता है।


देखें पोस्टइस पोस्ट में चार्मिखा नागाल्ला कहती हैं, 'मैं बेंगलुरु के ट्रैफिक में जल्दी पहुंचने के लिए बाइक टैक्सी का इस्तेमाल कर रही थी। लेकिन इस बार का राइडर कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड लग रहा था। जब मैंने पूछा तो उसने कहा कि आज उसका पहला दिन है। उसने बताया कि वो इन्फोसिस में काम करता है।' ​ नागाल्ला ने इस बात पर चिंता जताते हुए ये भी लिखा है कि 'ये देखकर अच्छा लगता है कि लोग साइड में कुछ और काम भी कर रहे हैं, लेकिन मुझे ये भी लगता है कि क्या अकेलापन एक महामारी बन रहा है? कुछ समय पहले हमने देखा था कि माइक्रोसॉफ्ट का एक कर्मचारी अकेलेपन से बचने के लिए वीकेंड में ऑटो चला रहा था। क्या हम हसलिंग के नाम पर गहरे मुद्दों को छिपा रहे हैं?'
यूजर्स ने दिए ऐसे रिएक्शन image

नागाल्ला के इस पोस्ट पर सोशल मीडिया यूजर्स ने अपनी राय रखी। कुछ लोगों ने इसे प्रेरणादायक बताया तो कुछ ने अकेलेपन के मुद्दे पर चिंता जताई।

एक यूजर ने लिखा, 'ये दिलचस्प नजरिया है। लोगों को अपने समय का सदुपयोग करते देखना मोटीवेशलन है। लेकिन आपका अकेलेपन वाला मुद्दा सोचने पर मजबूर करता है।' एक अन्य यूजर ने लिखा, 'मुझे नहीं लगता कि अकेलेपन को हसलिंग का नाम देना सही है। ये बदलाव डरावना है।'

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