नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के तमाम दावों के बाद आज भी राष्ट्रीय राजधानी में हाथ से मैला साफ करने यानी मैनुअल स्कैवेजिंग जारी है। यह कानून और मानवीय गरिमा का उल्लंघन है। दो अगस्त को दिल्ली में हुए एक सर्वे में पता चला कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अब भी जारी है। गणेश नगर में मदर डेयरी फ्लैट्स के पास आठ लोग नाला साफ कर रहे थे। ये सभी लोग सुंदर नगर से थे। उन्हें यह काम लोक निर्माण विभाग के एक ठेकेदार ने सौंपा था। वहीं गीता कॉलोनी रोड पर भी चार लोग नाला साफ कर रहे थे।
नाले की सफाई कर रहे सोनू ने कहा, 'ये नाले बहुत संकरे हैं, इसलिए हम अंदर नहीं जा रहे हैं। हम इस नाले को साफ करने के लिए फावड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन कई बार प्लास्टिक की बोतलें नाले को जाम कर देती हैं। तब हमें अंदर जाना पड़ता है।
न्यूनतम मजदूरी से भी कम मिलते हैं पैसे
मैनुअल स्कैवेजिंग करने वाले श्रमिकों को अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम पैसे मिलते हैं। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी होते हैं। यह काम कई बार उनकी जान के लिए खतरा भी साबित होता है।
केंद्र सरकार का दावा नहीं मिले मैनुअल स्कैवेंजिंग के एक भी केस
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने 22 जुलाई को सदन में यह जानकारी दी कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से मैनुअल स्कैवेंजिंग की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में अठावले ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 ने 6 दिसंबर, 2013 से मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
अप्रैल 2025 में हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, पिछली सरकार से यह जानकारी करनी चाहिए कि उन्होंने नाला सफाई के लिए जो मशीनें खरीदी थीं, उनका क्या हुआ? उन्होंने कहा, सरकारों से सवाल करना चाहिए कि वह मशीनें कहां गईं जिनके साथ उन्होंने फोटो खिंचवाई थी?
बहराल आज भी दिल्ली में मैनुअल स्कैवेंजिंग जारी है। जो कि कानून और मानवीय गरिमा दोनों का अपमान है।
नाले की सफाई कर रहे सोनू ने कहा, 'ये नाले बहुत संकरे हैं, इसलिए हम अंदर नहीं जा रहे हैं। हम इस नाले को साफ करने के लिए फावड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन कई बार प्लास्टिक की बोतलें नाले को जाम कर देती हैं। तब हमें अंदर जाना पड़ता है।
न्यूनतम मजदूरी से भी कम मिलते हैं पैसे
मैनुअल स्कैवेजिंग करने वाले श्रमिकों को अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम पैसे मिलते हैं। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी होते हैं। यह काम कई बार उनकी जान के लिए खतरा भी साबित होता है।
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केंद्र सरकार का दावा नहीं मिले मैनुअल स्कैवेंजिंग के एक भी केस
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने 22 जुलाई को सदन में यह जानकारी दी कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से मैनुअल स्कैवेंजिंग की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में अठावले ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 ने 6 दिसंबर, 2013 से मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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अप्रैल 2025 में हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, पिछली सरकार से यह जानकारी करनी चाहिए कि उन्होंने नाला सफाई के लिए जो मशीनें खरीदी थीं, उनका क्या हुआ? उन्होंने कहा, सरकारों से सवाल करना चाहिए कि वह मशीनें कहां गईं जिनके साथ उन्होंने फोटो खिंचवाई थी?
बहराल आज भी दिल्ली में मैनुअल स्कैवेंजिंग जारी है। जो कि कानून और मानवीय गरिमा दोनों का अपमान है।
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