नई दिल्ली : भारत एक मामले में दुनिया के नौवें पायदान पर बैठे रूस को भी पीछे छोड़ दिया है। दरअसल, भारत की वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 2036 तक बढ़कर 23 करोड़ हो जाएगी, जो 2011 की संख्या से दोगुनी से भी ज्यादा है। वे एक मजबूत अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकते हैं या परिवारों और सार्वजनिक सहायता प्रणालियों पर भारी बोझ बन सकते हैं। हालांकि, यह आबादी देश की मजबूत सिल्वर इकोनॉमी का आधार बन रही है। जापान के बाद भारत में भी बुजुर्गों की बड़ी आबादी तेजी से बढ़ रही है। यही नहीं पूरी दुनिया में इस वक्त बड़े देशों में यही बुजुर्ग सत्ता की बागडोर भी संभाले हुए हैं। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग हों, इन सभी की उम्र 70 पार है और पूरी दुनिया में इन्हीं का बोलबाला है। अब अपनी बढ़ती आबादी को लेकर बुजुर्ग खुश हो सकते हैं, मगर कुछ चुनौतियां भी हैं, जिनसे पार पाना है।
रूस और खाड़ी देशों को पीछे छोड़ा
140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में हर जनसांख्यिकी अमीर, गरीब, युवा, वृद्ध अनिवार्य रूप से चौंका देने वाली संख्या में तब्दील हो जाती है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 60 साल के ऊपर की भारत की बुजुर्गों आबादी 15 करोड़ हो चुकी है। यह रूस की पूरी आबादी को भी पीछे छोड़ चुकी है, क्योंकि रूस की हालिया आबादी करीब 14.6 करोड़ ही है। भारत की बुजुर्गों की यह आबादी छह खाड़ी देशों की संयुक्त जनसंख्या का ढाई गुना और चार स्कैंडिनेवियाई देशों की कुल जनसंख्या का सात गुना है।
60 पार बूढ़ों ने बढ़ाई देश की समृद्धि
पिछले साल वरिष्ठ देखभाल पर जारी नीति आयोग के एक शोधपत्र के अनुसार, बुजुर्गों की यह विशाल संख्या एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता की ओर इशारा करती है। भारत में हर पांच में से केवल एक वरिष्ठ नागरिक के पास स्वास्थ्य बीमा है। लगभग 70% अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिए आर्थिक रूप से परिवार के सदस्यों या मामूली पेंशन पर निर्भर हैं। फिर भी, देश की सिल्वर इकोनॉमी बुजुर्गों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुएं और सेवाएं पहले से ही 73,000 करोड़ रुपए अनुमानित है और आने वाले वर्षों में इसके कई गुना बढ़ने का अनुमान है।
एक शक्तिशाली विकास इंजन बनेगा भारत
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक निर्णायक जनसांख्यिकीय मोड़ पर है। जहां 2036 तक वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 23 करोड़ तक बढ़ जाएगी,जो 2011 की जनगणना के दोगुने से भी अधिक है। देश की रजत अर्थव्यवस्था एक शक्तिशाली विकास इंजन के रूप में उभर सकती है या वृद्ध आबादी परिवारों और लोक कल्याण प्रणालियों पर एक महत्वपूर्ण बोझ बन सकती है।
2050 तक करीब 66 करोड़ होगी यह आबादी
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत में अनुदैर्ध्य वृद्धावस्था अध्ययन (LASI) के अनुसार, भारत की आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 2011 में 8.6% से बढ़कर 2050 तक 19.5% (लगभग 319 मिलियन) होने का अनुमान है। यदि कोई 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों को शामिल करने के लिए लेंस का विस्तार करता है, तो वे जनसंख्या का लगभग 40% हिस्सा होंगे। यानी, अनुमानित रूप से 2050 तक 655 मिलियन लोग बुजुर्ग होंगे।
वरिष्ठता की बदलनी चाहिए परिभाषा
KPMG की मार्च 2025 की रिपोर्ट, The Rise of Silver Generation: Transforming the Senior Living Landscape में इसके सहयोगी चिंतन पटेल तर्क देते हैं कि वरिष्ठ जीवन की परिभाषा पर ही पुनर्विचार की आवश्यकता है। पारंपरिक रूप से 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु से जुड़ा, वरिष्ठ जीवन शायद 50+ से शुरू होना चाहिए। वह कहते हैं कि क्या हमें 50+ के सक्रिय वयस्कों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वरिष्ठ जीवन को नए सिरे से परिभाषित नहीं करना चाहिए। केवल वृद्धावस्था देखभाल के बजाय स्वतंत्रता, जुड़ाव और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?
ये हैं बुजुर्गों के समक्ष बड़ी चुनौतियां
रिपोर्ट के अनुसार, जहां हाई इनकम वाले पेशेवरों का एक छोटा वर्ग समय से पहले सेवानिवृत्ति ले सकता है और अपने 50 के दशक की उम्र क्रूज या यात्राओं में बिता सकता है। वहीं अधिकांश भारतीयों के लिए वास्तविकता बिल्कुल अलग है। 60 की उम्र में, नियमित कमाई बंद हो जाती है और कई लोगों को सामान्य जीवनशैली भी बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ज्यादातर कई तरह की बीमारियों से जूझ भी रह होते हैं। सरकार की कुछ योजनाएं हैं जैसे अटल पेंशन योजना या आयुष्मान योजना, मगर ये काफी नहीं हैं। बूढ़ों के अनुभव का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाना चाहिए।
रूस और खाड़ी देशों को पीछे छोड़ा
140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में हर जनसांख्यिकी अमीर, गरीब, युवा, वृद्ध अनिवार्य रूप से चौंका देने वाली संख्या में तब्दील हो जाती है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 60 साल के ऊपर की भारत की बुजुर्गों आबादी 15 करोड़ हो चुकी है। यह रूस की पूरी आबादी को भी पीछे छोड़ चुकी है, क्योंकि रूस की हालिया आबादी करीब 14.6 करोड़ ही है। भारत की बुजुर्गों की यह आबादी छह खाड़ी देशों की संयुक्त जनसंख्या का ढाई गुना और चार स्कैंडिनेवियाई देशों की कुल जनसंख्या का सात गुना है।
60 पार बूढ़ों ने बढ़ाई देश की समृद्धि
पिछले साल वरिष्ठ देखभाल पर जारी नीति आयोग के एक शोधपत्र के अनुसार, बुजुर्गों की यह विशाल संख्या एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता की ओर इशारा करती है। भारत में हर पांच में से केवल एक वरिष्ठ नागरिक के पास स्वास्थ्य बीमा है। लगभग 70% अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिए आर्थिक रूप से परिवार के सदस्यों या मामूली पेंशन पर निर्भर हैं। फिर भी, देश की सिल्वर इकोनॉमी बुजुर्गों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुएं और सेवाएं पहले से ही 73,000 करोड़ रुपए अनुमानित है और आने वाले वर्षों में इसके कई गुना बढ़ने का अनुमान है।
एक शक्तिशाली विकास इंजन बनेगा भारत
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक निर्णायक जनसांख्यिकीय मोड़ पर है। जहां 2036 तक वरिष्ठ नागरिकों की आबादी 23 करोड़ तक बढ़ जाएगी,जो 2011 की जनगणना के दोगुने से भी अधिक है। देश की रजत अर्थव्यवस्था एक शक्तिशाली विकास इंजन के रूप में उभर सकती है या वृद्ध आबादी परिवारों और लोक कल्याण प्रणालियों पर एक महत्वपूर्ण बोझ बन सकती है।
2050 तक करीब 66 करोड़ होगी यह आबादी
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत में अनुदैर्ध्य वृद्धावस्था अध्ययन (LASI) के अनुसार, भारत की आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 2011 में 8.6% से बढ़कर 2050 तक 19.5% (लगभग 319 मिलियन) होने का अनुमान है। यदि कोई 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों को शामिल करने के लिए लेंस का विस्तार करता है, तो वे जनसंख्या का लगभग 40% हिस्सा होंगे। यानी, अनुमानित रूप से 2050 तक 655 मिलियन लोग बुजुर्ग होंगे।
वरिष्ठता की बदलनी चाहिए परिभाषा
KPMG की मार्च 2025 की रिपोर्ट, The Rise of Silver Generation: Transforming the Senior Living Landscape में इसके सहयोगी चिंतन पटेल तर्क देते हैं कि वरिष्ठ जीवन की परिभाषा पर ही पुनर्विचार की आवश्यकता है। पारंपरिक रूप से 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु से जुड़ा, वरिष्ठ जीवन शायद 50+ से शुरू होना चाहिए। वह कहते हैं कि क्या हमें 50+ के सक्रिय वयस्कों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वरिष्ठ जीवन को नए सिरे से परिभाषित नहीं करना चाहिए। केवल वृद्धावस्था देखभाल के बजाय स्वतंत्रता, जुड़ाव और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?
ये हैं बुजुर्गों के समक्ष बड़ी चुनौतियां
रिपोर्ट के अनुसार, जहां हाई इनकम वाले पेशेवरों का एक छोटा वर्ग समय से पहले सेवानिवृत्ति ले सकता है और अपने 50 के दशक की उम्र क्रूज या यात्राओं में बिता सकता है। वहीं अधिकांश भारतीयों के लिए वास्तविकता बिल्कुल अलग है। 60 की उम्र में, नियमित कमाई बंद हो जाती है और कई लोगों को सामान्य जीवनशैली भी बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ज्यादातर कई तरह की बीमारियों से जूझ भी रह होते हैं। सरकार की कुछ योजनाएं हैं जैसे अटल पेंशन योजना या आयुष्मान योजना, मगर ये काफी नहीं हैं। बूढ़ों के अनुभव का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाना चाहिए।
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