नई दिल्ली: गोल्डमैन सैक्स ने बड़ी चेतावनी दी है। उसके मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा सकती हैं। यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब ग्लोबल ऑयल मार्केट में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। ट्रंप प्रशासन के कदमों से व्यापार युद्ध तेज होने और चीन जैसे देशों के विरोध के कारण मंदी का खतरा बढ़ गया है। इससे दुनियाभर में ऊर्जा की खपत पर बुरा असर पड़ सकता है। हालांकि, गोल्डमैन सैक्स की चेतावनी सच साबित होने पर भारत के लिए कई पॉजिटिव पहलू हैं। क्रूड कीमतों में बड़ी गिरावट से उसकी लॉटरी खुल सकती है। इससे भारत की आयात लागत कम होगी। महंगाई पर अंकुश लगेगा। साथ ही कई उद्योगों को लाभ होगा।तेल बाजार में भारी अस्थिरता है। ट्रंप प्रशासन के व्यापार युद्ध और चीन के विरोध के कारण मंदी का खतरा बढ़ गया है। इससे ऊर्जा खपत पर असर पड़ेगा। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 65.05 डॉलर प्रति बैरल है। हाल में यह चार साल के निचले स्तर पर चला गया था। व्यापार तनाव के कारण वैश्विक ऊर्जा बाजार में दिक्कतें आ रही हैं। तेल की कीमतें भू-राजनीतिक और आर्थिक कारकों से प्रभावित हो रही हैं। 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा सकती हैं कीमतेंगोल्डमैन सैक्स का कहना है कि अगर हालात बिगड़े तो तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा सकती हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने ट्रेड वॉर को हवा दे दी है। चीन जैसे देश इसका विरोध कर रहे हैं। इससे मंदी का खतरा बढ़ गया है। मंदी आने से दुनिया भर में ऊर्जा की खपत कम हो जाएगी। भारत के लिए क्यों है गुड न्यूज?हालांकि, क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट भारत के लिए गुड न्यूज होगी। इसके पीछे कई कारण हैं। पहला, भारत अपनी तेल की जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात करता है। तेल की कीमतों में गिरावट से भारत का आयात बिल काफी कम हो जाएगा। इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा। साथ ही व्यापार घाटा कम हो सकता है।दूसरा, तेल परिवहन और उत्पादन लागत का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। कीमतों में गिरावट से पेट्रोल, डीजल और अन्य वस्तुओं की कीमतें कम होंगी। इससे महंगाई को काबू करने में मदद मिलेगी। यह आम आदमी के लिए सबसे बड़ी राहत होगी। तीसरा, सरकार ईंधन पर उत्पाद शुल्क और अन्य टैक्स लगाती है। अगर तेल की कीमतें कम रहती हैं तो सरकार को उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए इन टैक्सों को कम करने की गुंजाइश मिल सकती है। इससे राजकोषीय घाटे को प्रबंधित करने में मदद मिलेगी। इन भारतीय उद्योगों को होगा फायदाचौथा, परिवहन, लॉजिस्टिक्स, पेंट और पेट्रोकेमिकल्स जैसे उद्योग क्रूड को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से उनकी उत्पादन लागत कम होगी। इससे उनकी प्रॉफिटेबिलिटी में इजाफा होगा। ईंधन और अन्य वस्तुओं की कीमतें कम होने से उपभोक्ताओं के पास खर्च करने के लिए अधिक पैसा बचेगा। इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ सकती है। वहीं, तेल की कीमतों में गिरावट से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा। इससे भारतीय रुपये को मजबूती मिल सकती है।कुल मिलाकर, भारत प्रमुख तेल आयातक होने के नाते तेल की कीमतों में गिरावट से काफी ज्यादा लाभान्वित होगा। जब तक कि यह गिरावट वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी मंदी का संकेत न दे। मंदी की सबसे ज्यादा मार अमेरिका को पड़ सकती है। चीन को भी इसका नुकसान झेलना पड़ेगा।
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