पटना: बिहार की राजनीति के रंग कुछ ऐसे हैं कि यह बालीवुड के फिल्म निर्माता-निर्देशकों का पसंदीदा विषय बना रहा है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में राजनीति को केंद्र में रखकर जो फिल्में बनीं उसमें से अधिकांश या तो बिहार के नेताओं या फिर यहां की राजनीतिक घटनाओं पर आधारित रही हैं। वास्तव में राजनीति में 'बाहुबली' को परिभाषित करने के लिए बिहार के राजनीतिक परिदृश्य का चित्रण सबसे मुफीद रहा है। बिहार की राजनीति पर पहले जहां हिंदी फिल्में बनती रहीं वहीं अब इससे एक कदम और आगे बढ़कर बड़ी संख्या में वेब सीरीज बन चुकी हैं। इन वेब सीरीज के कारण बिहार की राजनीति चर्चित होने के साथ-साथ 'बदनाम' भी हो रही है। हालांकि कई फिल्में बिहार की राजनीति का काला सच बहुत गहराई से उजागर करने वाली हैं।
बिहार की राजनीति की स्याह सच्चाईबिहार के ही निवासी बालीवुड के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा वैसे तो राजनीति पर केंद्रित फिल्में ही ज्यादा बनाते रहे, लेकिन इनमें भी उनकी फिल्मों के विषय बिहार की सियासत पर ही केंद्रित रहे हैं। उन्होंने कई सच्ची घटनाओं को अपनी कल्पनाशीलता से फिल्म के पर्दे पर उतारा। बिहार की राजनीति की स्याह सच्चाई को वे अत्यंत गहराई के साथ प्रभावी ढंग से पेश करते रहे हैं। खास तौर पर उनकी चार फिल्में ऐसी हैं जो बिहार के समाज और राजनीति की कड़वी सच्चाई उजागर करती हैं। झा की फिल्में 'गंगाजल', 'अपहरण', 'मृत्युदंड' और 'दामुल' बहुत चर्चित भी हुईं। ये फिल्में बिहार के समाज और राजनीति में अपराधियों के धमक को उजागर करती हैं।
प्रकाश झा की फिल्म 'गंगाजल' सन 2003 में आई थी। यह फिल्म भागलपुर के कुख्यात 'आंखफोड़वा कांड' पर आधारित थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें 33 कैदियों की आंखें फोड़कर उन्हें अंधा कर दिया गया था। पुलिस ने कथित तौर पर एसिड से उनकी आंखों को धोया था। यह फिल्म काफी सफल रही और इसे कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे।
शहाबुद्दीन पर फिल्म 'अपहरण'सन 2005 में आई फिल्म 'अपहरण' भी प्रकाश झा की एक यादगार फिल्म है। यह फिल्म सीवान के 'बाहुबली' कहे जाने वाले शहाबुद्दीन के जीवन से काफी हद तक प्रेरित थी। प्रकाश झा ने यह बात स्वीकार भी की। फिल्म 'अपहरण' में नाना पाटेकर, अजय देवगन, बिपाशा बसु और यशपाल शर्मा जैसे कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं थीं।
प्रकाश झा की फिल्म 'मृत्युदंड' सन 1997 में आई थी। फिल्म में माधुरी दीक्षित, शबाना आजमी और ओम पुरी जैसे शानदार कलाकार थे। यह फिल्म तीन बहादुर महिलाओं की कहानी है जो अपने पतियों और समाज के बाहुबली पुरुषों के खिलाफ लड़ती हैं। इस फिल्म में पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को बखूबी चित्रण किया गया है।
सन 1985 में प्रकाश झा ने फिल्म 'दामुल' बनाई थी जो कि बिहार में बंधुआ मजदूरों के जीवन पर आधारित थी। 'दामुल' को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला था। इन फिल्मों के जरिए प्रकाश झा ने बिहार की उन सच्चाईयों को सामने रखा जिन पर अक्सर पर्दा डाल दिया जाता था।
फिल्म में बिहार का 'रॉबिन हुड'सिर्फ प्रकाश झा ही नहीं कई अन्य फिल्म डायरेक्टर भी बिहार की राजनीति को केंद्र में रखकर फिल्में बनाते रहे हैं। सन 1987 में डायरेक्टर एन चंद्रा ने बिहार के बाहुबली नेता काली पांडेय पर फिल्म 'प्रतिघात' बनाई थी। बाद में फिल्म का रीमेक तेलगू में भी हुआ था। काली पांडेय 1980 और 90 के दशक में बिहार की राजनीति में सक्रिय एक ऐसे नेता व्यक्ति थे जो गरीबों की मदद करने के लिए जाने जाते थे, लेकिन उन पर अपराधों में शामिल होने के आरोप भी लगते रहे थे। इस फिल्म में बिहार के 'रॉबिन हुड' कहे जाने वाले पूर्व सांसद काली पांडेय से प्रेरित एक खलनायक का किरदार था।
ओटीटी पर बिहार की राजनीति के धमाकेबिहार की समाज, अपराध और राजनीति पर फिल्में तो काफी बनी हीं, कई ओटीटी प्लेटफार्म पर कई बेव सीरीज भी आईं। इन वेब सीरीज में सबसे अधिक चर्चित 'महारानी' है जिसका सीजन 4 आ चुका है। 'महारानी' बिहार की राजनीतिक में चलती रही उठापटक और बदलाव की स्थितियों से प्रेरित है। इस सीरीज को देखते हुए लोग इसकी तुलना राबड़ी देवी और लालू यादव के दौर से करते हैं। वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' शेखपुरा के एक कुख्यात गैंगस्टर के खिलाफ एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के संघर्ष की कहानी है। यह बिहार में होने वाले अपराध, जातिगत दुराव और राजनीति के गठजोड़ को उजागर करती है।
सन 1980 के दशक की सच्ची घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज 'रक्तांचल' अपराधियों और नेताओं के संबंध उजागर करती है। इसके केंद्र में बिहार और यूपी की सीमा पर पूर्वांचल में क्षेत्रीय राजनीति की हिंसक दुनिया है। वेब सीरीज 'दुपहिया' बिहार के ग्रामीण जीवन और स्थानीय राजनीति में प्रतिद्वंद्विता और विश्वासघात की कहानी है। इसमें ग्रामीण स्तर पर होने वाले राजनीतिक संघर्ष हैं। वेब सीरीज 'रंगबाज' बिहार की सत्ता और भय की राजनीति पर केंद्रित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे अक्सर बलशाली लोग राजनीतिक महत्वाकांक्षी हो उठते हैं।
बिहार की राजनीति की स्याह सच्चाईबिहार के ही निवासी बालीवुड के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा वैसे तो राजनीति पर केंद्रित फिल्में ही ज्यादा बनाते रहे, लेकिन इनमें भी उनकी फिल्मों के विषय बिहार की सियासत पर ही केंद्रित रहे हैं। उन्होंने कई सच्ची घटनाओं को अपनी कल्पनाशीलता से फिल्म के पर्दे पर उतारा। बिहार की राजनीति की स्याह सच्चाई को वे अत्यंत गहराई के साथ प्रभावी ढंग से पेश करते रहे हैं। खास तौर पर उनकी चार फिल्में ऐसी हैं जो बिहार के समाज और राजनीति की कड़वी सच्चाई उजागर करती हैं। झा की फिल्में 'गंगाजल', 'अपहरण', 'मृत्युदंड' और 'दामुल' बहुत चर्चित भी हुईं। ये फिल्में बिहार के समाज और राजनीति में अपराधियों के धमक को उजागर करती हैं।
प्रकाश झा की फिल्म 'गंगाजल' सन 2003 में आई थी। यह फिल्म भागलपुर के कुख्यात 'आंखफोड़वा कांड' पर आधारित थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें 33 कैदियों की आंखें फोड़कर उन्हें अंधा कर दिया गया था। पुलिस ने कथित तौर पर एसिड से उनकी आंखों को धोया था। यह फिल्म काफी सफल रही और इसे कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे।
शहाबुद्दीन पर फिल्म 'अपहरण'सन 2005 में आई फिल्म 'अपहरण' भी प्रकाश झा की एक यादगार फिल्म है। यह फिल्म सीवान के 'बाहुबली' कहे जाने वाले शहाबुद्दीन के जीवन से काफी हद तक प्रेरित थी। प्रकाश झा ने यह बात स्वीकार भी की। फिल्म 'अपहरण' में नाना पाटेकर, अजय देवगन, बिपाशा बसु और यशपाल शर्मा जैसे कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं थीं।
प्रकाश झा की फिल्म 'मृत्युदंड' सन 1997 में आई थी। फिल्म में माधुरी दीक्षित, शबाना आजमी और ओम पुरी जैसे शानदार कलाकार थे। यह फिल्म तीन बहादुर महिलाओं की कहानी है जो अपने पतियों और समाज के बाहुबली पुरुषों के खिलाफ लड़ती हैं। इस फिल्म में पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को बखूबी चित्रण किया गया है।
सन 1985 में प्रकाश झा ने फिल्म 'दामुल' बनाई थी जो कि बिहार में बंधुआ मजदूरों के जीवन पर आधारित थी। 'दामुल' को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला था। इन फिल्मों के जरिए प्रकाश झा ने बिहार की उन सच्चाईयों को सामने रखा जिन पर अक्सर पर्दा डाल दिया जाता था।
फिल्म में बिहार का 'रॉबिन हुड'सिर्फ प्रकाश झा ही नहीं कई अन्य फिल्म डायरेक्टर भी बिहार की राजनीति को केंद्र में रखकर फिल्में बनाते रहे हैं। सन 1987 में डायरेक्टर एन चंद्रा ने बिहार के बाहुबली नेता काली पांडेय पर फिल्म 'प्रतिघात' बनाई थी। बाद में फिल्म का रीमेक तेलगू में भी हुआ था। काली पांडेय 1980 और 90 के दशक में बिहार की राजनीति में सक्रिय एक ऐसे नेता व्यक्ति थे जो गरीबों की मदद करने के लिए जाने जाते थे, लेकिन उन पर अपराधों में शामिल होने के आरोप भी लगते रहे थे। इस फिल्म में बिहार के 'रॉबिन हुड' कहे जाने वाले पूर्व सांसद काली पांडेय से प्रेरित एक खलनायक का किरदार था।
ओटीटी पर बिहार की राजनीति के धमाकेबिहार की समाज, अपराध और राजनीति पर फिल्में तो काफी बनी हीं, कई ओटीटी प्लेटफार्म पर कई बेव सीरीज भी आईं। इन वेब सीरीज में सबसे अधिक चर्चित 'महारानी' है जिसका सीजन 4 आ चुका है। 'महारानी' बिहार की राजनीतिक में चलती रही उठापटक और बदलाव की स्थितियों से प्रेरित है। इस सीरीज को देखते हुए लोग इसकी तुलना राबड़ी देवी और लालू यादव के दौर से करते हैं। वेब सीरीज 'खाकी: द बिहार चैप्टर' शेखपुरा के एक कुख्यात गैंगस्टर के खिलाफ एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के संघर्ष की कहानी है। यह बिहार में होने वाले अपराध, जातिगत दुराव और राजनीति के गठजोड़ को उजागर करती है।
सन 1980 के दशक की सच्ची घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज 'रक्तांचल' अपराधियों और नेताओं के संबंध उजागर करती है। इसके केंद्र में बिहार और यूपी की सीमा पर पूर्वांचल में क्षेत्रीय राजनीति की हिंसक दुनिया है। वेब सीरीज 'दुपहिया' बिहार के ग्रामीण जीवन और स्थानीय राजनीति में प्रतिद्वंद्विता और विश्वासघात की कहानी है। इसमें ग्रामीण स्तर पर होने वाले राजनीतिक संघर्ष हैं। वेब सीरीज 'रंगबाज' बिहार की सत्ता और भय की राजनीति पर केंद्रित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे अक्सर बलशाली लोग राजनीतिक महत्वाकांक्षी हो उठते हैं।





