बिहार में कौन से फैक्टर चुनाव की दिशा तय कर रहे हैं? चुनाव कवर करने के दौरान बिहार और दूसरे राज्यों में मुझे एक फर्क दिखा। यहां लोग राजनीति की बात करने से हिचकिचाते नहीं। उनसे बात कर ये साफ हो जाता है कि बिहार में जिस जाति आधारित राजनीति की बात होती रही है, वह अब भी कम नहीं हुई है।   
   
जाति है कि जाती नहींचुनाव में दूसरे मुद्दे भी हैं, लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर जाति ही है। इसी जातीय समीकरण को साधने के हिसाब से NDA में सीटों का बंटवारा हुआ। कैंडिडेट्स के चयन में भी यह बड़ा फैक्टर है। अपर कास्ट में NDA को बढ़त दिख रही है। इस समुदाय के लोग बात तो विकास की कर रहे हैं, लेकिन जाति की वजह से झुकाव की बात भी छुपाते नहीं। वहीं यादव और पिछड़ा समुदाय के लोग खुलकर लालू को सपोर्ट करने की बात कर रहे हैं। यहां लोग कहते मिल जाएंगे कि जाति छोड़कर हम कहां जाएंगे।
     
महिला वोट तय करेंगे दिशाजाति को लेकर जहां तस्वीर साफ है, वहीं युवाओं और महिलाएं के वोट से चुनाव की दिशा तय होगी। गयाजी से नालंदा और पटना से वैशाली तक चर्चा है, महिलाओं के अकाउंट में आए 10 हजार रुपये की। जिनके अकाउंट में अब तक पैसे नहीं आए हैं, उनमें कुछ को उम्मीद है कि पैसे आ जाएंगे, वहीं कुछ नाराज भी हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत बिहार सरकार ने चुनाव से ठीक पहले 1 करोड़ महिलाओं के अकाउंट में 10 हजार रुपये की पहली किस्त ट्रांसफर की। महिलाओं के अकाउंट में आए पैसे का असर अन्य राज्यों के चुनाव में दिख चुका है। वहीं, युवा वोटर्स रोजगार और विकास की बात कर रहे हैं। कई युवा रोजगार के लिए तेजस्वी यादव पर भरोसा करने की बात कर रहे हैं। जन सुराज के प्रशांत किशोर को भी युवा पसंद कर रहे हैं। ऐसे नौजवान भी मिले, जिन्होंने कहा कि वे अब तक BJP के साथ रहे हैं, लेकिन इस बार प्रशांत किशोर की तरफ जाने की सोच रहे हैं। ऐसे में जिन सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है, वहां अगर जन सुराज के प्रत्याशी जरा भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो खेल पलट सकता है। हालांकि लोग यह भी कह रहे हैं कि वोट बर्बाद नहीं करना है और जीतने वाले को वोट देना है।
     
पलायन और शराबबंदीपलायन के मुद्दे की यहां काफी चर्चा है। रोजी-रोटी के लिए 'बाहर' जाने का दर्द सभी को है। युवाओं को बिहार की इमेज की भी चिंता है। जिन वजहों से इमेज खराब हुई है, उसका भी वे जिक्र करते हैं। शराबबंदी बड़ा मुद्दा है। हालांकि इसकी वजह से वोटर अपना वोट बदलेंगे, यह कम ही लगता है। मगर महागठबंधन समर्थकों के साथ NDA समर्थक भी शराबबंदी को असफल बता रहे हैं। वे इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की बात कर रहे हैं। जंगलराज को मुद्दा बनाने में NDA सफल दिख रही है। वे युवा जिन्होंने वो दौर नहीं देखा, जिसके बारे में कहा जाता है कि तब किडनैपिंग सबसे बड़ा उद्योग था और जातियों के बीच जबरदस्त संघर्ष था, वे भी जंगलराज की बातें कर रहे हैं। युवा, बुजुर्गों से सुने हुए किस्सों का जिक्र कर रहे हैं। वे कहते हैं कि बिहार को पुरानी वाली स्थिति में नहीं लाना है। वैसे कानून-व्यवस्था की बात पर ये सवाल उठाते लोग भी मिले कि क्या अब मर्डर नहीं हो रहे और क्या अब अपराध नहीं हो रहे। लेकिन ज्यादातर मानते हैं कि कानून व्यवस्था मुद्दा है और स्थिति बेहतर हुई है।
  
जाति है कि जाती नहींचुनाव में दूसरे मुद्दे भी हैं, लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर जाति ही है। इसी जातीय समीकरण को साधने के हिसाब से NDA में सीटों का बंटवारा हुआ। कैंडिडेट्स के चयन में भी यह बड़ा फैक्टर है। अपर कास्ट में NDA को बढ़त दिख रही है। इस समुदाय के लोग बात तो विकास की कर रहे हैं, लेकिन जाति की वजह से झुकाव की बात भी छुपाते नहीं। वहीं यादव और पिछड़ा समुदाय के लोग खुलकर लालू को सपोर्ट करने की बात कर रहे हैं। यहां लोग कहते मिल जाएंगे कि जाति छोड़कर हम कहां जाएंगे।
महिला वोट तय करेंगे दिशाजाति को लेकर जहां तस्वीर साफ है, वहीं युवाओं और महिलाएं के वोट से चुनाव की दिशा तय होगी। गयाजी से नालंदा और पटना से वैशाली तक चर्चा है, महिलाओं के अकाउंट में आए 10 हजार रुपये की। जिनके अकाउंट में अब तक पैसे नहीं आए हैं, उनमें कुछ को उम्मीद है कि पैसे आ जाएंगे, वहीं कुछ नाराज भी हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत बिहार सरकार ने चुनाव से ठीक पहले 1 करोड़ महिलाओं के अकाउंट में 10 हजार रुपये की पहली किस्त ट्रांसफर की। महिलाओं के अकाउंट में आए पैसे का असर अन्य राज्यों के चुनाव में दिख चुका है। वहीं, युवा वोटर्स रोजगार और विकास की बात कर रहे हैं। कई युवा रोजगार के लिए तेजस्वी यादव पर भरोसा करने की बात कर रहे हैं। जन सुराज के प्रशांत किशोर को भी युवा पसंद कर रहे हैं। ऐसे नौजवान भी मिले, जिन्होंने कहा कि वे अब तक BJP के साथ रहे हैं, लेकिन इस बार प्रशांत किशोर की तरफ जाने की सोच रहे हैं। ऐसे में जिन सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है, वहां अगर जन सुराज के प्रत्याशी जरा भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो खेल पलट सकता है। हालांकि लोग यह भी कह रहे हैं कि वोट बर्बाद नहीं करना है और जीतने वाले को वोट देना है।
पलायन और शराबबंदीपलायन के मुद्दे की यहां काफी चर्चा है। रोजी-रोटी के लिए 'बाहर' जाने का दर्द सभी को है। युवाओं को बिहार की इमेज की भी चिंता है। जिन वजहों से इमेज खराब हुई है, उसका भी वे जिक्र करते हैं। शराबबंदी बड़ा मुद्दा है। हालांकि इसकी वजह से वोटर अपना वोट बदलेंगे, यह कम ही लगता है। मगर महागठबंधन समर्थकों के साथ NDA समर्थक भी शराबबंदी को असफल बता रहे हैं। वे इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की बात कर रहे हैं। जंगलराज को मुद्दा बनाने में NDA सफल दिख रही है। वे युवा जिन्होंने वो दौर नहीं देखा, जिसके बारे में कहा जाता है कि तब किडनैपिंग सबसे बड़ा उद्योग था और जातियों के बीच जबरदस्त संघर्ष था, वे भी जंगलराज की बातें कर रहे हैं। युवा, बुजुर्गों से सुने हुए किस्सों का जिक्र कर रहे हैं। वे कहते हैं कि बिहार को पुरानी वाली स्थिति में नहीं लाना है। वैसे कानून-व्यवस्था की बात पर ये सवाल उठाते लोग भी मिले कि क्या अब मर्डर नहीं हो रहे और क्या अब अपराध नहीं हो रहे। लेकिन ज्यादातर मानते हैं कि कानून व्यवस्था मुद्दा है और स्थिति बेहतर हुई है।
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