नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस हफ्ते चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात में वह रूस से तेल की खरीद में कमी लाने पर चर्चा कर सकते हैं। ट्रंप को उम्मीद है कि इस बातचीत से अमेरिका और चीन के बीच 'पूर्ण समझौता' हो सकता है। इस पर पूरी दुनिया के साथ भारत की भी नजर है। भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता रहा है। इस सस्ते तेल के 'खजाने' को ट्रंप लगातार लूटने की कोशिश में हैं। उन्होंने रूसी तेल आयात के कारण भारत पर 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है।
ट्रंप ने एशिया की यात्रा पर जाते हुए पत्रकारों से कहा कि वह गुरुवार को दक्षिण कोरिया के ग्योंगजू में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) शिखर सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग से मिलेंगे। उन्होंने कहा, 'हम कई चीजों पर बात करेंगे। मुझे लगता है कि हमारे पास एक बहुत व्यापक समझौता करने का बहुत अच्छा मौका है।'
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, तकनीक और कच्चे माल पर प्रतिबंधों को लेकर तनाव बढ़ा हुआ है। इसी माहौल में यह मुलाकात हो रही है। अमेरिकी और चीनी वार्ताकार पिछले सप्ताहांत कुआलालंपुर में मिले थे। वित्त विभाग के एक प्रवक्ता ने इन वार्ताओं को 'बहुत रचनात्मक' बताया था। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और चीनी उप-प्रधानमंत्री हे लिफेंग के नेतृत्व वाली टीमें रविवार को फिर से बातचीत शुरू करने वाली हैं।
ट्रंप कर रहे हैं बड़े दावे
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका की ओर से रोजनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर प्रतिबंध लगाने के बाद चीन ने रूसी तेल खरीदना 'बहुत कम कर दिया है'। ये दोनों ही रूस की दो बड़ी ऊर्जा कंपनियां हैं। उन्होंने कहा, 'मैं शायद इस पर चर्चा कर सकता हूं। लेकिन, आप जानते हैं कि चीन - आपने शायद आज देखा होगा - चीन रूसी तेल की खरीद बहुत कम कर रहा है और भारत पूरी तरह से कम कर रहा है और हमने प्रतिबंध लगाए हैं।'
अमेरिका ने बुधवार को ये प्रतिबंध लगाए थे। ये यूक्रेन युद्ध के चौथे साल में प्रवेश करने के बाद रूस के पेट्रोलियम उद्योग पर पहली बड़ी कार्रवाई है। व्हाइट हाउस ने विदेशी वित्तीय संस्थानों को भी चेतावनी दी है कि अगर वे प्रतिबंधित रूसी संस्थाओं के साथ व्यापार जारी रखते हैं तो उन्हें अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से बाहर रखा जा सकता है।
ट्रंप ने कहा कि शी जिनपिंग के साथ उनकी बातचीत में कृषि क्षेत्र और चीन की ओर से फेंटानिल कम्पोनेंट के निर्यात पर भी चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि नेताओं के बीच सीधी बातचीत 'सबसे अच्छा तरीका' है। इससे टैरिफ और व्यापार बाधाओं से लेकर ताइवान और यूक्रेन जैसे भू-राजनीतिक मुद्दों को हल किया जा सकता है।
यह मुलाकात जनवरी में व्हाइट हाउस लौटने के बाद ट्रंप और शी जिनपिंग की पहली आमने-सामने की मुलाकात होगी। दोनों नेता इस साल कम से कम तीन बार बात कर चुके हैं।
भारत पर संभावित असरट्रंप की ओर से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ रूस से तेल कटौती पर चर्चा करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए सीधे तौर पर बड़ा खतरा पैदा करता है। भारत पिछले कुछ सालों में रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदकर अपनी रिफाइनिंग कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोलियम कीमतों को स्थिर रखने में सफल रहा है। इससे देश को अनुमानित 17 अरब डॉलर तक की बचत हुई है। अगर अमेरिका चीन पर दबाव डालकर रूसी तेल के प्रवाह को बाधित करता है तो ग्लोबल तेल की कीमतें बढ़ेंगी। इसके चलते भारत को फिर से पारंपरिक (और महंगे) मिडिल ईस्ट स्रोतों से तेल खरीदना पड़ेगा। इससे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। महंगाई भड़क सकती है। अर्थव्यवस्था पर सीधा दबाव आ सकता है।
इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने रूसी तेल खरीद को लेकर भारत पर लगातार ऊंचे टैरिफ की तलवार लटका रखी है। ट्रंप और शी के बीच किसी भी 'कंप्लीट डील' का नतीजा भारत पर यह टैरिफ लगाने का अमेरिकी दबाव बढ़ा सकता है। इससे भारत के कपड़ा, दवा और अन्य प्रमुख निर्यात बुरी तरह प्रभावित होंगे। एक तरफ अमेरिका का व्यापारिक दबाव और दूसरी तरफ रूस से सस्ते ऊर्जा स्रोत खोने का खतरा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों के लिए जटिल भू-राजनीतिक चुनौती पेश करता है। भारत की ओर से यह साफ किया गया है कि उसकी ऊर्जा नीति केवल राष्ट्रीय हितों और नागरिकों के हितों पर आधारित होगी, किसी बाहरी दबाव पर नहीं।
ट्रंप ने एशिया की यात्रा पर जाते हुए पत्रकारों से कहा कि वह गुरुवार को दक्षिण कोरिया के ग्योंगजू में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) शिखर सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग से मिलेंगे। उन्होंने कहा, 'हम कई चीजों पर बात करेंगे। मुझे लगता है कि हमारे पास एक बहुत व्यापक समझौता करने का बहुत अच्छा मौका है।'
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, तकनीक और कच्चे माल पर प्रतिबंधों को लेकर तनाव बढ़ा हुआ है। इसी माहौल में यह मुलाकात हो रही है। अमेरिकी और चीनी वार्ताकार पिछले सप्ताहांत कुआलालंपुर में मिले थे। वित्त विभाग के एक प्रवक्ता ने इन वार्ताओं को 'बहुत रचनात्मक' बताया था। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और चीनी उप-प्रधानमंत्री हे लिफेंग के नेतृत्व वाली टीमें रविवार को फिर से बातचीत शुरू करने वाली हैं।
ट्रंप कर रहे हैं बड़े दावे
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका की ओर से रोजनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर प्रतिबंध लगाने के बाद चीन ने रूसी तेल खरीदना 'बहुत कम कर दिया है'। ये दोनों ही रूस की दो बड़ी ऊर्जा कंपनियां हैं। उन्होंने कहा, 'मैं शायद इस पर चर्चा कर सकता हूं। लेकिन, आप जानते हैं कि चीन - आपने शायद आज देखा होगा - चीन रूसी तेल की खरीद बहुत कम कर रहा है और भारत पूरी तरह से कम कर रहा है और हमने प्रतिबंध लगाए हैं।'
अमेरिका ने बुधवार को ये प्रतिबंध लगाए थे। ये यूक्रेन युद्ध के चौथे साल में प्रवेश करने के बाद रूस के पेट्रोलियम उद्योग पर पहली बड़ी कार्रवाई है। व्हाइट हाउस ने विदेशी वित्तीय संस्थानों को भी चेतावनी दी है कि अगर वे प्रतिबंधित रूसी संस्थाओं के साथ व्यापार जारी रखते हैं तो उन्हें अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से बाहर रखा जा सकता है।
ट्रंप ने कहा कि शी जिनपिंग के साथ उनकी बातचीत में कृषि क्षेत्र और चीन की ओर से फेंटानिल कम्पोनेंट के निर्यात पर भी चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि नेताओं के बीच सीधी बातचीत 'सबसे अच्छा तरीका' है। इससे टैरिफ और व्यापार बाधाओं से लेकर ताइवान और यूक्रेन जैसे भू-राजनीतिक मुद्दों को हल किया जा सकता है।
यह मुलाकात जनवरी में व्हाइट हाउस लौटने के बाद ट्रंप और शी जिनपिंग की पहली आमने-सामने की मुलाकात होगी। दोनों नेता इस साल कम से कम तीन बार बात कर चुके हैं।
भारत पर संभावित असरट्रंप की ओर से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ रूस से तेल कटौती पर चर्चा करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए सीधे तौर पर बड़ा खतरा पैदा करता है। भारत पिछले कुछ सालों में रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदकर अपनी रिफाइनिंग कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोलियम कीमतों को स्थिर रखने में सफल रहा है। इससे देश को अनुमानित 17 अरब डॉलर तक की बचत हुई है। अगर अमेरिका चीन पर दबाव डालकर रूसी तेल के प्रवाह को बाधित करता है तो ग्लोबल तेल की कीमतें बढ़ेंगी। इसके चलते भारत को फिर से पारंपरिक (और महंगे) मिडिल ईस्ट स्रोतों से तेल खरीदना पड़ेगा। इससे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। महंगाई भड़क सकती है। अर्थव्यवस्था पर सीधा दबाव आ सकता है।
इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने रूसी तेल खरीद को लेकर भारत पर लगातार ऊंचे टैरिफ की तलवार लटका रखी है। ट्रंप और शी के बीच किसी भी 'कंप्लीट डील' का नतीजा भारत पर यह टैरिफ लगाने का अमेरिकी दबाव बढ़ा सकता है। इससे भारत के कपड़ा, दवा और अन्य प्रमुख निर्यात बुरी तरह प्रभावित होंगे। एक तरफ अमेरिका का व्यापारिक दबाव और दूसरी तरफ रूस से सस्ते ऊर्जा स्रोत खोने का खतरा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों के लिए जटिल भू-राजनीतिक चुनौती पेश करता है। भारत की ओर से यह साफ किया गया है कि उसकी ऊर्जा नीति केवल राष्ट्रीय हितों और नागरिकों के हितों पर आधारित होगी, किसी बाहरी दबाव पर नहीं।
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