नई दिल्ली: हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की वर्ल्ड कप 2025 की जीत को 1983 में पुरुष टीम की ऐतिहासिक सफलता से जोड़ना भले ही एक आसान तुलना हो, लेकिन यह महिला खिलाड़ियों द्वारा सदियों से चली आ रही सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की लंबी लड़ाई को अनदेखा करता है। 2025 की यह जीत सिर्फ एक खेल की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने की क्षमता रखती है।
विपरीत परिस्थितियों में मिली सफलता
1983 की पुरुष टीम की जीत उम्मीदें किसी को नहीं थी। सब कुछ अचानक से हो गया था। उस दौर में पुरुष क्रिकेटरों को कम सुविधाएं, कम वेतन मिलता था और उनसे जीत की उम्मीद भी नहीं थी। जीत के बाद उन्हें पैसे और बेहतर सुविधाएं मिलीं। इसके विपरीत, महिला टीम की जीत सुविधाओं, पैसे और प्रसिद्धि के लगातार बढ़ने के बाद आई है।
2006 में BCCI द्वारा महिला क्रिकेट को अपने अधीन लेने के बाद से ट्रेनिंग, घरेलू ढांचे और खिलाड़ियों के वेतन में लगातार वृद्धि हुई है। यह जीत कोई अचानक हुई घटना नहीं थी; टीम 2017 और 2020 के विश्व कप फाइनल में पहुंचकर पहले ही अपनी क्षमता साबित कर चुकी थी। ऐसे में अब सिर्फ जीत जरूरी थी। जीत ऐसी की सदियों तक इसे याद किया जाए।
समाज की ग्लास सीलिंग को धकेलना
यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस देश में महिलाओं के लिए कोई भी उपलब्धि आसानी से नहीं मिलती। सदियों से समाज ने ऐसे नियम बनाए हैं जिन्होंने उन्हें खेल से दूर रखा है, यह तय किया है कि वे क्या पहनेंगी, किस समय बाहर जाएंगी और उनका जीवन पढ़ाई, शादी और घर के कामों तक सीमित रहेगा।
यह पक्षपात खेल के बुनियादी ढांचे और मीडिया कवरेज तक में घुसा रहा है। सबसे गंभीर बात यह है कि देश के कुछ हिस्सों में आज भी लड़की को बोझ समझा जाता है। फाइनल की प्लेयर ऑफ द मैच शेफाली वर्मा हरियाणा से आती हैं, वह राज्य जहां कन्या भ्रूण हत्या का लंबा इतिहास रहा है। यह जीत उन सभी सामाजिक बाधाओं पर विजय है।
व्यापक सामाजिक प्रभाव
डायना एडुलजी और पीटी उषा से लेकर सानिया मिर्जा और साइना नेहवाल तक, इन खिलाड़ियों ने पहले ही रास्ते बनाए हैं। लेकिन क्रिकेट की अपार लोकप्रियता को देखते हुए, 2025 की यह जीत शायद महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पर सबसे बड़ा प्रभाव डालेगी। यह सिर्फ महिला क्रिकेट को ही नहीं, बल्कि लाखों युवा लड़कियों को खेल और जीवन के हर क्षेत्र में अपने लिए जगह बनाने के लिए प्रेरित करेगी। 1983 पुरुष क्रिकेट के लिए परिवर्तनकारी था, लेकिन 2025 की जीत का प्रभाव शायद पूरे भारतीय समाज पर पड़ेगा।
विपरीत परिस्थितियों में मिली सफलता
1983 की पुरुष टीम की जीत उम्मीदें किसी को नहीं थी। सब कुछ अचानक से हो गया था। उस दौर में पुरुष क्रिकेटरों को कम सुविधाएं, कम वेतन मिलता था और उनसे जीत की उम्मीद भी नहीं थी। जीत के बाद उन्हें पैसे और बेहतर सुविधाएं मिलीं। इसके विपरीत, महिला टीम की जीत सुविधाओं, पैसे और प्रसिद्धि के लगातार बढ़ने के बाद आई है।
2006 में BCCI द्वारा महिला क्रिकेट को अपने अधीन लेने के बाद से ट्रेनिंग, घरेलू ढांचे और खिलाड़ियों के वेतन में लगातार वृद्धि हुई है। यह जीत कोई अचानक हुई घटना नहीं थी; टीम 2017 और 2020 के विश्व कप फाइनल में पहुंचकर पहले ही अपनी क्षमता साबित कर चुकी थी। ऐसे में अब सिर्फ जीत जरूरी थी। जीत ऐसी की सदियों तक इसे याद किया जाए।
समाज की ग्लास सीलिंग को धकेलना
यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस देश में महिलाओं के लिए कोई भी उपलब्धि आसानी से नहीं मिलती। सदियों से समाज ने ऐसे नियम बनाए हैं जिन्होंने उन्हें खेल से दूर रखा है, यह तय किया है कि वे क्या पहनेंगी, किस समय बाहर जाएंगी और उनका जीवन पढ़ाई, शादी और घर के कामों तक सीमित रहेगा।
यह पक्षपात खेल के बुनियादी ढांचे और मीडिया कवरेज तक में घुसा रहा है। सबसे गंभीर बात यह है कि देश के कुछ हिस्सों में आज भी लड़की को बोझ समझा जाता है। फाइनल की प्लेयर ऑफ द मैच शेफाली वर्मा हरियाणा से आती हैं, वह राज्य जहां कन्या भ्रूण हत्या का लंबा इतिहास रहा है। यह जीत उन सभी सामाजिक बाधाओं पर विजय है।
व्यापक सामाजिक प्रभाव
डायना एडुलजी और पीटी उषा से लेकर सानिया मिर्जा और साइना नेहवाल तक, इन खिलाड़ियों ने पहले ही रास्ते बनाए हैं। लेकिन क्रिकेट की अपार लोकप्रियता को देखते हुए, 2025 की यह जीत शायद महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पर सबसे बड़ा प्रभाव डालेगी। यह सिर्फ महिला क्रिकेट को ही नहीं, बल्कि लाखों युवा लड़कियों को खेल और जीवन के हर क्षेत्र में अपने लिए जगह बनाने के लिए प्रेरित करेगी। 1983 पुरुष क्रिकेट के लिए परिवर्तनकारी था, लेकिन 2025 की जीत का प्रभाव शायद पूरे भारतीय समाज पर पड़ेगा।
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