पटना: बिहार में दशकों तक RJD का चेहरा रहने के बाद पार्टी के संरक्षक लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव के लिए राजनीतिक जगह छोड़ रहे हैं। INDIA ब्लॉक के बिहार के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार एक ऐसे चुनावी अभियान के केंद्र में हैं, जिसे उत्तराधिकारी के इर्द-गिर्द पार्टी की छवि को फिर से गढ़ने के लिए डिजाइन किया गया है। वैसे, लालू यादव अब भी RJD के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, मगर किसी भी चुनावी पोस्टर में नहीं दिख रहे हैं। तेजस्वी को बिहार का 'नायक' बताया जा रहा है। उनके मुख्यमंत्री चुने जाने पर महत्वपूर्ण बदलावों का वादा किया जा रहा है। बीमार चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे हैं, हालांकि उनकी पत्नी राबड़ी देवी, जो खुद भी मुख्यमंत्री रही हैं, हाल ही में राघोपुर गई थीं। तो, क्या लालू का स्वास्थ्य ही एकमात्र कारण है कि वो अभियान का हिस्सा नहीं हैं, या बिहार के कई दशकों के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियतों में रहे लालू यादव अपनी उपयोगिता खो चुके हैं?
जंगल राज के ताने... पोस्टर से गायब लालू!RJD सूत्रों ने कहा कि लालू का बैक कर जाना राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी से जुड़े नकारात्मक कारकों को बेअसर करने की एक सोची-समझी कोशिश का हिस्सा है। RJD के 15 साल के कार्यकाल को अभी भी NDA से 'जंगल राज' के ताने मिलते हैं, जिसमें लालू यादव पर खास तौर पर फोकस रखा जाता है। सूत्रों ने आगे कहा कि अपने हाजिर जवाबी और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले लालू यादव अब भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं। अपने ट्रेडमार्क वन-लाइनर्स के साथ प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बना रहे हैं।
चुनावी अभियान की चतुराई आएगी काम?राष्ट्रीय जनता दल के एक पदाधिकारी ने कहा, 'लालू का नाम या उनके पोस्टरों में दिखने से NDA को हमें निशाना बनाने का मसाला मिलता है। इसलिए, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार उन्हें चुनावी अभियान से दूर रखने की चतुराई से योजना बनाई है, और इसके बजाय तेजस्वी पर ध्यान केंद्रित किया है।' 2020 में, तेजस्वी सरकार बनाने के करीब पहुंच गए थे, RJD के नेतृत्व वाले गठबंधन और NDA के बीच केवल 12 सीटों का अंतर था। दोनों पक्षों के लिए डाले गए कुल वोटों में ये अंतर 12,655 का था।
20 महीने वाले वादे पर कितना भरोसा?आम धारणा ये है कि तेजस्वी इस बार किसी भी विवाद में पड़ने से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं। वो अभियान को सकारात्मकता का स्पर्श देने की भी कोशिश कर रहे हैं, हर परिवार को नौकरी देने, सरकारी विभागों में संविदा कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने और पलायन को समाप्त करने की बात कर रहे हैं। उनका पसंदीदा नारा है, 'बस मुझे एक मौका दीजिए, और मैं 20 महीने में वो करूंगा जो 20 साल में नहीं हुआ।' ये सब उन्होंने अपने पिता लालू यादव के नाम एक बार भी लिए बिना वादा किया है।
जंगल राज के ताने... पोस्टर से गायब लालू!RJD सूत्रों ने कहा कि लालू का बैक कर जाना राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी से जुड़े नकारात्मक कारकों को बेअसर करने की एक सोची-समझी कोशिश का हिस्सा है। RJD के 15 साल के कार्यकाल को अभी भी NDA से 'जंगल राज' के ताने मिलते हैं, जिसमें लालू यादव पर खास तौर पर फोकस रखा जाता है। सूत्रों ने आगे कहा कि अपने हाजिर जवाबी और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के लिए जाने जाने वाले लालू यादव अब भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं। अपने ट्रेडमार्क वन-लाइनर्स के साथ प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बना रहे हैं।
चुनावी अभियान की चतुराई आएगी काम?राष्ट्रीय जनता दल के एक पदाधिकारी ने कहा, 'लालू का नाम या उनके पोस्टरों में दिखने से NDA को हमें निशाना बनाने का मसाला मिलता है। इसलिए, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार उन्हें चुनावी अभियान से दूर रखने की चतुराई से योजना बनाई है, और इसके बजाय तेजस्वी पर ध्यान केंद्रित किया है।' 2020 में, तेजस्वी सरकार बनाने के करीब पहुंच गए थे, RJD के नेतृत्व वाले गठबंधन और NDA के बीच केवल 12 सीटों का अंतर था। दोनों पक्षों के लिए डाले गए कुल वोटों में ये अंतर 12,655 का था।
20 महीने वाले वादे पर कितना भरोसा?आम धारणा ये है कि तेजस्वी इस बार किसी भी विवाद में पड़ने से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं। वो अभियान को सकारात्मकता का स्पर्श देने की भी कोशिश कर रहे हैं, हर परिवार को नौकरी देने, सरकारी विभागों में संविदा कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने और पलायन को समाप्त करने की बात कर रहे हैं। उनका पसंदीदा नारा है, 'बस मुझे एक मौका दीजिए, और मैं 20 महीने में वो करूंगा जो 20 साल में नहीं हुआ।' ये सब उन्होंने अपने पिता लालू यादव के नाम एक बार भी लिए बिना वादा किया है।
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