अंकारा: तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने एक बार फिर कश्मीर के मुद्दे में अपनी नाक घुसाने की कोशिश की है। एर्दोगन ने शनिवार 17 मई को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बात की और इस दौरान कश्मीर मामले में मध्यस्थ बनने की इच्छा जताई। इस मामले में भारत का स्टैंड साफ है कि कश्मीर का मुद्दा नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच द्विपक्षीय मु्द्दा है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है। बातचीत के बाद एर्दोगन ने कहा, 'हमने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ कश्मीर मुद्दे पर व्यापक बातचीत की और सहायता के तरीके तलाशे।'तुर्की के राष्ट्रपति ने आगे कहा, 'मुद्दों पर संतुलित दृष्टिकोण दोनों पक्षों को समाधान के करीब ला सकता है और नए सिरे से तनाव को रोकने में मदद कर सकता है।' उन्होंने सुझाव दिया कि दोनों पड़ोसी देश बातचीत की मेज पर आएं। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वार्ता और आतंकवाद एक साथ नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए केवल दो मुद्दे बचे हैं - आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को भारत को वापस करना। कश्मीर पर एर्दोगन ने लांघी सीमाएर्दोगन एक कदम आगे निकल गए और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी के साथ कश्मीर मुद्दे के लिए मानवाधिकार-आधारित समाधान की अपील कर डाली। उन्होंने कहा, 'तुर्की के रूप में हम ऐसे समाधान की उम्मीद करते हैं, जो मानवाधिकारों का सम्मान करता हो और जिसमें अंतरराष्ट्रीय निकायों की रचनात्मक भागीदारी शामिल हो।' 'तुर्की भूमिका निभाने को तैयार'एर्दोगन ने आगे कहा, 'अगर अनुरोध किया जाता है तो तुर्की अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। हम शांति चाहते हैं।' यह पहली बार नहीं है जब एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दे को लेकर टिप्पणी की है। इसके पहले वे संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठा चुके हैं, जिस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। नई दिल्ली ने लगातार कहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इसमें किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है। तुर्की की पाकिस्तान से दोस्तीएर्दोगन की कश्मीर पर ताजा टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब पाकिस्तान के साथ हालिया सैन्य संघर्ष में तुर्की की भूमिका को लेकर भारत में गुस्सा है। तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन उपलब्ध कराए थे, जिसका इस्तेमाल ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के खिलाफ किया गया था। पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की का बड़े पैमाने पर बहिष्कार का आह्वान हो रहा है। साल 2023 में तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान भारत मदद पहुंचाने वाले शुरुआती देशों में था। नई दिल्ली ने तत्काल मानवीय सहायता देने के लिए 'ऑपरेशन दोस्त' शुरू किया था।
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