बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जाति आधारित जनगणना को मंजूरी देकर बड़ा तुरुप का पत्ता खेला है। कांग्रेस पार्टी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे थे। वहीं, बिहार की राजनीति में कांग्रेस की सहयोगी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर कांग्रेस और आरजेडी से यह मुद्दा छीन लिया है और अब विपक्षी दलों को जातिगत जनगणना पर अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा.
पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी और विपक्षी दल जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं। राहुल गांधी अक्सर अपने भाषणों और प्रचार में कहते रहे हैं कि अगर उनकी सरकार बनी तो जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी और आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को तोड़ा जाएगा, लेकिन अब मोदी सरकार ने यह कदम उठाकर विपक्ष की रणनीति को कमजोर कर दिया है।
बिहार चुनाव से पहले मोदी सरकार का यह फैसला राजनीतिक तौर पर तो काफी अहम माना जा रहा है, लेकिन सामाजिक न्याय की दिशा में भी यह काफी महत्वपूर्ण है। इसके कारण कांग्रेस और विपक्ष के लिए एक प्रमुख चुनावी मुद्दा उनके हाथ से फिसलता नजर आ रहा है।
जाति जनगणना क्या है?
जाति जनगणना में देश के नागरिकों की जाति के आधार पर आंकड़े एकत्र किये जायेंगे। इससे पता चलेगा कि किस जाति और वर्ग को अभी तक सामाजिक लाभ नहीं मिला है। यह जनगणना पहली बार केन्द्र सरकार द्वारा औपचारिक रूप से आयोजित की जाएगी, जबकि अब तक केवल सामाजिक-आर्थिक जनगणना ही आयोजित की गई है।
कांग्रेस-विपक्ष की धार सख्त करने की कोशिश
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की है। भाजपा ने कहा है कि कांग्रेस सरकारों ने आज तक जाति आधारित जनगणना का विरोध किया है। स्वतंत्रता के बाद की सभी जनगणनाओं में जातियों की गणना नहीं की गई। भाजपा ने इस पर प्रचार शुरू कर दिया है।
भाजपा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने कभी भी जातियों की सही जनगणना कराने का इरादा नहीं दिखाया। पार्टी का आरोप है कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में यह जरूर कहा था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा, लेकिन इसके बाद केवल कैबिनेट समूह का गठन किया गया, जिसकी सिफारिशों के बावजूद कांग्रेस सरकार ने जातिगत आंकड़े जुटाने के बजाय केवल सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण (एसईसीसी) कराया।
भाजपा का कहना है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में शामिल अन्य दल अब इस मुद्दे को केवल राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि सत्ता में रहते हुए उन्होंने कभी इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
भाजपा ने संकेत दिया है कि वह इस कथानक को पूरे देश में ले जाएगी और जनता के सामने कांग्रेस के "दोहरे मानदंडों" को उजागर करेगी। बिहार जैसे राज्य में, जहां जातिगत समीकरण चुनाव परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं, यह मुद्दा महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
जाति जनगणना पर राहुल के बयान से बवाल
हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि बिहार में जाति आधारित जनगणना का उद्देश्य "लोगों को मूर्ख बनाना" है। 18 जनवरी को पटना में कांग्रेस के संविधान रक्षा सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हम बिहार की तरह जाति आधारित जनगणना नहीं कराएंगे, जिसका उद्देश्य लोगों को मूर्ख बनाना है। हम ऐसा इसलिए करेंगे ताकि हमें प्रत्येक क्षेत्र में जाति समूहों का सही अनुपात पता चल सके। गांधीजी ने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी 50% आरक्षण कोटा सीमा को तोड़ने के पक्ष में है।
राहुल गांधी की टिप्पणी से राजनीतिक विवाद छिड़ गया। उनकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने उनकी टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा कि उनका इरादा केवल यह पूछना था कि नवंबर 2023 में विभिन्न जाति समूहों के लिए कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने के बिहार सरकार के फैसले को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं किया गया, जिससे इसे कानूनी जांच से सुरक्षा मिलती।
एनडीए नेताओं ने कांग्रेस नेता के पाखंड को उजागर करते हुए कहा कि जब जातिगत सर्वेक्षण कराया गया था, तब कांग्रेस महागठबंधन सरकार का हिस्सा थी और अब मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर राहुल गांधी के दावे पर बड़ा हमला किया है और इससे कांग्रेस और राजद को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
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