मुंबई,11 अगस्त ( हि.स.) । गणपति बप्पा की शोभायात्रा में अथवा किसी भी उत्सव के जलूस … सजावट, रोशनी और ढोल-नगाड़ों की ध्वनि के बीच भक्ति का सागर उमड़ पड़ता है। लेकिन, उत्सव समाप्त होते ही यह रौनक प्रकृति के गले में तारों, प्लास्टिक और जहरीले रसायनों का फंदा कस देती है।और फिर रह जाता है विशाल कचरे का अंबार,यह धर्म पर आस्था नहीं, प्रकृति की हत्या है।ठाणे के पर्यावरणविद् डॉ. प्रशांत सिंनकर ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे को भेजे एक भावुक बयान में कहा कि जलूस के बाद युद्ध स्तर पर सफाई करना भी जरूरी है।
डॉ. सिंनकर ने बताया कि हर साल गणेशोत्सव के बाद, सड़कों, नालियों और पानी में हजारों टन कचरा जैसे टूटे हुए एलईडी लैंप, जले हुए तार, डिजिटल स्क्रीन, साउंड सिस्टम के अवशेष, मोटर चालित सजावट के टुकड़े बह जाते हैं। इस कचरे में मौजूद सीसा, पारा, कैडमियम और प्लास्टिक जैसे खतरनाक रसायन हवा, पानी और मिट्टी को ज़हरीला बना देते हैं। ये फैलते हैं। नदियाँ, नाले, झीलें, समुद्र प्रदूषण के मूक शिकार बन जाते हैं।
इस बयान में उन्होंने दुख जताते हुए कहा, विसर्जन के दिन की खुशी तो दिखती है, लेकिन उसके बाद प्रकृति का विनाश किसी को नज़र नहीं आता। किसी को एहसास ही नहीं होता कि हम गणपति के नाम पर बप्पा की रचना का गला घोंट रहे हैं।
डॉ. सिंनकर ने इस संबंध में कुछ सुझाव दिए हैं।: हर ज़िले, तहसील और शहर में अलग गणेशोत्सव-कचरा संग्रहण केंद्र अधिकृत कचरा पुनर्चक्रण इकाइयों के साथ तत्काल समझौता। बड़े और मध्यम मंडलों के लिए कचरा पुनर्चक्रण अनिवार्य करने का सरकारी आदेश का पालन हो। स्कूलों और कॉलेजों में पुनर्चक्रण जागरूकता अभियान चलाया जाए।
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा
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