जयपुर, 11 अगस्त (Udaipur Kiran) । हरियाली तीज के बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया मंगलवार को कजली तीज मनाई जाएगी। विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रमा की विधिवत पूजा करेंगी। यह माहेश्वरी, पारीक, दाधीच, कायस्थ समाज में सर्वाधिक प्रचलित है। इसे सातुड़ी तीज या बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। सोमवार को कजली तीज की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। सुहागिन महिलाओं ने हाथों पर मेहंदी लगाई। घरों में विशेष पकवान बनाए गए।
ज्योतिषाचार्य बनवारी लाल शर्मा ने बताया भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 11 अगस्त सुबह 10:33 बजे आरंभ हो गई जो 12 अगस्त सुबह 8:40 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर कजरी तीज का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा। इस बार तीज के दिन मंगलवार की चतुर्थी तिथि होने से अंगारकी चतुर्थी और बहुला चतुर्थी का भी संयोग बन रहा है, जो सुहाग और संतान दोनों के लिए शुभ फलदायक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कजरी तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इसी दिन मां पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था।
बनेंगे कई शुभ योग
इस दिन कई शुभ योग बनेंगे जिनमें शुक्रम योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव वास योग, मघा, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का संयोग शामिल है। इन योगों में भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
ऐसे करें पूजन
सुबह स्नान के बाद व्रत संकल्प लें। नीमड़ी माता को जल और रोली के छींटे दें, चावल अर्पित करें। नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेंहदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया लगाएं—मेंहदी और रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से तथा काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगाएं। इसके बाद मोली, मेहंदी, काजल और वस्त्र अर्पित करें। पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें। दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगाएं और नीमड़ी माता को फल व दक्षिणा अर्पित करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।
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(Udaipur Kiran)
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